कृपा का तेरी एक कण चाहता हूं

कृपा का तेरी एक कण चाहता हूं
न मैं धाम धरती न धन चाहता हूं।

कृपा का तेरी एक कण चाहता हूं।
रटे नाम तेरा वह चाहूं मैं रसना ।

सुने यश तेरा वह श्रवण चाहता हूं ।
विमल ज्ञान धारा से मस्तिष्क उर्वर

वह श्रद्धा से भरपूर मन चाहता हूं

कृपा का तेरी एक कण चाहता हूं


करें दिव्य दर्शन तेरा जो निरन्तर ।

वही भाग्यशाली नयन चाहता हूं ॥
नहीं चाहना है मुझे स्वर्ग-छवि की ।

मैं केवल तुम्हें प्राण-धन चाहता हूँ ॥

कृपा का तेरी एक कण चाहता हूं
प्रकाश आत्मा में अलौकिक तेरा हो ।

परम ज्योति प्रत्येक क्षण चाहता हूं ॥
कृपा का तेरी एक कण चाहता

Share on whatsapp
Share on facebook
Share on twitter
Share on pinterest
Share on telegram
Share on email

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *