तेरे आंखों के दरिया का ,
उतरना भी जरूरी था,
मोहब्बत भी ज़रूरी थी,
बिछड़ना भी ज़रूरी था ।
सब ज़रूरी है,
निश्चित है,
ज़रूरी ना भी हो,
तो भी अनिवार्य है।
हम चाहें या ना चाहें।
सब सपना है,
जिसे हम अभी सपना समझ रहे हैं ,
वह भी सपना है,
जिसे वास्तविक समझ रहे हैं,
वह भी एक सपना है।
बस किस सपने को कब समझ पाते हैं।
यही मूल प्रश्न है ।
जब तक बाहर हैं,
सब सच लगता है,
जब अंदर हैं,
तब कुछ कुछ आभास होता है।
कठिन है समझ पाना ,
क्योंकि यह मन, बुद्धि से परे है,
सिर्फ़ अनुभूति है,
जब शुद्ध अनुभूति रह जाती है।
पर इस अनुभूति की झलक भी,
रेयर ही मिलती है,
बस तभी,
जब विचार से परे हो जाते हैं।
इसे शब्दों में व्यक्त कर पाना शायद संभव नहीं।
राम राम जी 🌹🙏
Of the rivers of your eyes, It was also necessary to get down, Love was also important, Separation was also necessary.
Everything is important, sure, Even if it is not necessary, Even then it is mandatory.
Whether we like it or not.
Everything is a dream, Which we are thinking of as a dream right now, That is also a dream,
Which is considered real, That too is a dream.
Only when are we able to understand which dream? This is the basic question.
As long as you are outside, everything seems true, When inside, Then something dawns on you.
It is difficult to understand, Because it is beyond mind and intellect, It’s just a feeling, When pure feeling remains.
But even a glimpse of this feeling, It is rare to find, Just then, When you go beyond thoughts.
It is probably not possible to express it in words. Ram Ram ji 🌹🙏