अध्यात्मिक के लिए सुख शब्द बहुत छोटा है सुख तो मन का है आत्मा आनंद का रस जिसने पिया है वह सुख को दुख रूप में देखता है वह जानता है शरीर को मन को जितना संसारिक सुख के अधीन करोगे यह मन उतना ही आलसी बनेगा और और की प्यास बढ़ाएगा। सुख से कभी कोई तृप्त नहीं हो सकता है एक अध्यात्मिक कर्तव्य कर्म कठिन परिश्रम के लिए हर समय तैयार रहता है अध्यात्मिक आनंद रस में भी ढुबना नहीं चाहता है वह हर घडी सतर्क रहता है जय श्री राम अनीता गर्ग
आनन्द रस
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