भक्त भगवान को भजते हुए भगवान के भाव मे लीन रहता है। भक्त का दिल हर क्षण भगवान को पुकारता है ।भक्त के दिल में रह रह कर विचार उठते हैं कि अवश्य ही तेरे चिन्तन मनन में गहराई नही है। तु भगवान को सच्चे हदय से नहीं भजता है तेरा भगवान से सच्चा प्रेम नहीं है। फिर चिन्तन करता है भगवान कैसे होंगे भगवान से साक्षात्कार कैसे होगा। क्या भगवान तेरी पुकार को सुनेंगे। आत्मचिंतन कर पाएगी। भक्त फिर सोचता देख जीवन की संध्या नजदीक है मिलन भी होगा या फ़िर आना और जाना होगा। तेरे कितने ही जन्म बीत गए। तु वैसे ही भोग विलास में लगा रहा। भक्त भगवान को पुकारता है मेरे भगवान हे स्वामी भगवान् नाथ हे प्राण प्रिय तुम कंहा छुप गए हो मै तो पगला हू मुझे तो तुम्हारा सिमरण भी नहीं करना आता है। गुरु मात पिता तुम मेरे हो। तुम दिल हो तुम ही मन हो। भक्त भगवान के चिन्तन में लगा हुआ है तब भगवान भक्त के मन को संसार से खिंच लेते हैं भक्त के दिल की शांति परम पिता परमात्मा के नाम मे बस जाती है।
भक्त दिन रात परमात्मा का सिमरण करता है। तङफ और गहरी हो जाती है। तङफ जितनी गहरी होगी उतना ही भक्त शरीर से गोण होगा। जितने शरीर गोण होगा उतना ही भक्त के अन्दर से संसार खत्म होता है भगवान भक्त के अन्दर संसार को रहने नहीं देते हैं। भक्त को आंनद से प्रेम विस्वास से भर देते हैं। भक्त भगवान का बन जाता है तब संसार के लिए भक्त के पास समय नहीं है। भक्त का भाव, ध्यान, विनय, स्तुति, आनंद, शान्ति, सब में भगवान हैं। भक्त अपने स्वामी भगवान् में लीन हो जाता है। कभी पाठ करता है कभी दिप जला कर आरती करता है घर के कार्य को शुद्ध समर्पित भाव से करता है जैसे यह भगवान की सेवा हैं। जय श्री राम अनीता गर्ग
The devotee remains absorbed in the spirit of God while worshiping the Lord. The heart of the devotee calls out to the Lord every moment. Residing in the heart of the devotee, thoughts arise that surely there is no depth in your contemplation. You do not worship God with true heart, you do not have true love for God. Then thinks how God will be, how will God be interviewed. Will God listen to your call? Will be able to introspect. Seeing the devotee then thinks that the evening of life is near, there will be a meeting or will it come and go. How many births have you passed? In the same way, you were engaged in enjoyment and luxury. The devotee calls out to God, my God, Lord Lord Nath, dear soul, where have you been hiding, I am so mad, I do not even know how to remember you. You are my master, mother and father. You are the heart, you are the mind. When the devotee is engaged in the contemplation of God, then the Lord pulls the devotee’s mind away from the world; the peace of the devotee’s heart settles in the name of the Supreme Father, the Supreme Soul.
The devotee worships God day and night. The side gets deeper. The deeper it is, the more the devotee will be attached to the body. The more bodies there is, the more the world ends from within the devotee, the Lord does not allow the world to remain in the devotee. Love fills the devotee with joy and faith. When the devotee becomes of God, then the devotee has no time for the world. Devotee’s attitude, meditation, modesty, praise, joy, peace, there is God in all. The devotee gets absorbed in his master Lord. Sometimes he recites, sometimes does aarti by lighting a lamp, does the household work with a pure devotion, as if it is the service of God. Jai Shri Ram Anita Garg