भगवान का उपासक 1

images T

उपासक भगवान को दिल मे ऐसे बिठा लेता है जैसे हमारे मन में घर परिवार के सदस्य बैठे होते है। इस भाव में  हमें यह समझना  हैं कि हम भगवान को भजते हुए  तन मन से दिल से भगवान के बन जाए। भगवान हमे बार याद आने लगेंगे जैसे घर के सदस्य को याद करते हैं। भक्त फिर भगवान के साथ ऐसा सम्बन्ध बना लेता है। उठने बैठने में चलते हुए कार्य करते हुए भक्त भगवान के भाव मे लीन रहता है। उपासक के साथ भगवान हर समय रहते हैं। जैसे घर के सदस्य हमारे मन में बैठें होते हैं। हम कब किस विचार में घर के सदस्यों के बारे में सोचने लगते हैं ऐसे ही भक्त भगवान के साथ जुड़ जाता है। तब भक्त की हर किरया में भगवान होते हैं। घर के सदस्य के साथ हम ऊपरी तौर पर बना कर कोई व्यवहार नहीं करते हैं भगवान के साथ हम हर समय  जुड़े हुए हैं।भक्त अन्तर्मन से इतना गहरा जुड़ जाता है। कि उसके हर अंग से नाम ध्वनि अपने आप निकलने लगती है। तब भगवान भक्त के दिल को प्रेम श्रद्धा भक्ति  से तृप्त करते हैं। जन्म जन्मांतर की वासनाएं मिट जाती है उसे भगवान को माला लेकर भजना नहीं पङता है।क्या घर के सदस्य को याद करते हैं तब माला की आवश्यकता होती है नही वे हमारे मन में बैठें होते हैं हमे भगवान को दिल में बिठाना है।जय श्री राम अनीता गर्ग



The worshiper takes God in the heart in such a way that the members of the family are sitting in our mind. In this sense, we have to understand that while worshiping God, we should become of God with body and heart. God will start remembering us as often as remembering a member of the house. The devotee then makes such a relationship with the Lord. While doing work while getting up and sitting, the devotee remains absorbed in the spirit of God. God is with the worshiper at all times. Like the members of the house are sitting in our mind. When do we start thinking about the members of the household in such a way that the devotee gets associated with God. Then there is God in every action of the devotee. We do not do any dealing with the member of the household by making it outwardly, we are connected with God all the time. The devotee gets so deeply attached to the inner being. That the sound of name starts coming out automatically from every part of it. Then the Lord satisfies the heart of the devotee with love and devotion. The desires of birth after birth are erased, he does not have to worship God with a garland. Do you remember the member of the house, then there is no need of garland, they sit in our mind, we have to make God sit in the heart. Jai Shri Ram Anita Garg

Share on whatsapp
Share on facebook
Share on twitter
Share on pinterest
Share on telegram
Share on email

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *