भगवद्गीता

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मनुष्य जीवन को सुरक्षित कर लेना चाहता है,जो कि सुरक्षित हो ही नहीं सकता क्योंकि मौत सब कुछ छीन लेगी।
सभी का जीवन यहां मृत्यु की प्रतीक्षा में हैं।
प्रतिपल किसी की गर्दन कट जाती है।लेकिन जिनकी गर्दन अभी तक नहीं कटी है,वे संघर्ष में रत हैं,वे प्रतिस्पर्धा में जुटे हैं।

जितने दिन,जितने क्षण उनके हाथ में हैं,वे उन्हें उपयोग कर लेना है चाहते हैं।
इस उपयोग का एक ही अर्थ है कि किसी तरह अपने जीवन को सुरक्षित कर लेना है,जो कि सुरक्षित हो ही नहीं सकता।

मौत तो निश्चित है।मृत्यु तो आकर ही रहेगी।
मृत्यु तो एक अर्थ में आ ही गयी है।कतार में खड़े हैं हम और प्रतिपल कतार छोटा होता जाता है,हम करीब आते जाते हैं।

मौत ने अपनी तलवार उठाकर ही रखी है।वह हमारी गर्दन पर ही लटक रही है,किसी भी क्षण गिर सकती है।

लेकिन जब तक नहीं गिरी है,तब तक हम जीवन की आपाधापी में बड़े व्यस्त हैं और बटोर लूं,और इकट्ठा कर लूं? और थोड़े बड़े पद पर पहुंच जाऊं,और थोड़ी प्रतिष्ठा हो जाये और थोड़ा मान-मर्यादा मिल जाये।और अंत में सब मौत छीन लेगी।

जिन्हें मृत्यु का दर्शन हो गया, जिन्होंने ऐसा देख लिया कि मृत्यु सब छीन लेगी,उनके जीवन में संन्यास का पदार्पण होता है। उनके जीवन में एक क्रांति घटती है..!!

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