आज का प्रभु संकीर्तन।
भगवान कहते हैं मेरे भक्त मुझ से तुरन्त फल चाहते हैं,वो चाहते है कि मेने भगवान को भोग लगाया,पूजा पाठ की,भगवान की सेवा करता हूं,फिर भी मैं दुखी क्यों रहता हूं।भक्त नही समझते कि हर चीज समय से मिलती है।बीज से फल बनने में कितना समय लगता है,बीज ने कभी नही सोचा कि मै मिट्टी में दबा हूं,पानी धूप सब सहन करता हूं मै कब इससे बाहर निकलूंगा।बीज कितना धैर्य रखता है।तब कितने वर्षों पश्चात वह पौधे का रूप धारण करता है।
पढिये कथा।
एक शिष्य ने अपने गुरु से पूछा कि ईश्वर हमें दिखाई भी नहीं देता तो वो मदद कैसे करता है ।
गुरु ने पास में ही रखें सेब में से एक सेब शिष्य के हाथ मैं देकर उससे पूछा इसमें कितने बीज हें बता सकते हो ?
शिष्य ने सेब काटकर गिनकर कहा तीन बीज हैं !
गुरु ने एक बीज अपने हाथ में लिया और फिर पूछा-
इस बीज में कितने सेब हैं यह भी सोचकर बताओ?
शिष्य सोचने लगा एक बीज से एक पेड़, एक पेड़ से अनेक सेव, अनेक सेबो में फिर तीन -तीन बीज हर बीज से फिर एक एक पेड़ और यह अनवरत क्रम!
गुरु मुस्कुराते हुए बोले : बस इसी तरह से ईश्वर की कृपा हमें प्राप्त होती रहती है । बस हमें उसकी भक्ति का एक बीज अपने मन में लगा लेने की ज़रूरत है ।
और यह बीज लगाने के लिए पहले तो अपने मन रूपी बंजर भूमि पर बुराइयों से परहेज नामक हल चलाना पड़ेगा । फिर उसमें नेक व शुभकर्मों रूपी खाद डालना पड़ेगी और फिर उसमें ईश्वर के नाम रूपी बीज डालना पड़ेंगे ।
फिर गुरु ने शिष्य से पूछा — अब बताओं वह बीज अंकुरित होगा की नहीं ?
तो शिष्य ने कहा –गुरुदेव अब तो बीज अंकुरित होना ही हैं ।
गुरुदेव ने कहा–अभी भी वह अंकुरित नही होगा जब तक उसमें पानी नहीं डलेगा मतलब ईश्वर से प्रेम रूपी आँसु नहीं आएंगे तब तक वह भक्ति रूपी बीज अंकुरित नहीं होगा तो दोस्तों हम भी अपने ईश्वर को इसी तरह याद करें और प्रेम रूपी आँसु बहाए ताकि हमारे मन में भी वो बीज अंकुरित हो सकें ।।
जय जय श्री राधे कृष्णा जी।श्री हरि आपका कल्याण करें।