भक्ति की लौ लगना


महान संतों ने कहा है कि जिन मनुष्यो के मन मे भगवद भक्ति की लौ जल जाती है, वे बड़े ही भाग्यशाली होते हैं, क्योंकि भगवद भक्ति भी भगवान की किरपा से ही मिलती है। इस संसार में तीन उपलब्धियाँ अत्यंत दुर्लभ है:-प्रथम तो मनुष्य जन्म मिलना; क्योंकि यह देव-दुर्लभ है। देवयोनि भोग-योनि है जब तक पुण्य-कर्मों का फल शेष है, देवयोनि समाप्त नहीं हो सकती। इधर जब तक पाप कर्मों का फल शेष है, तब तक मनुष्य जन्म नहीं मिल सकता है। यह भगवान की कृपा से ही सुलभ हो पाता है। इसलिए गोस्वामी जी कहते है.. कि……..
‘ बड़े भाग मानुष तनु पावा’।
दूसरे किसी सच्चे संत का सत्संग मिलना कठिन है; क्योंकि यह संसार कर्मक्षेत्र है। इसमें मनुष्य प्रत्यक्ष, किंतु अन्तत: दुःख देनेवाले कर्मों में लिप्त मिलता है। प्रथम तो संतो का मिलना ही कठिन है. मिल भी जाय तो उनको पहचानना कठिन है। तभी गोस्वामी जी ने कहा है……
‘बिनु हरिकृपा मिलहिं नहिं संता’।।
तीसरा भगवभ्दजन में रूचि होना कठिन है। संसार के विषयों में आसक्ति जितनी सहज है, भजन में आसक्ति उतनी कठिन है। इसलिए भगवान शंकर माता पार्वती जी से कहते हैं…..
‘सुनहु उमा ते लोग अभागी। हरि तजि होहिं विषय अनुरागी’।।
निश्चित ही वे लोग अभागे हैं जो मनुष्य शरीर प्राप्त कर भगवद भजन नहीं करते, तथा हरि का परित्याग कर विषयों के प्रति अनुरक्त होते हैं।जो व्यक्ति भगवद मनन,भजन,पठन,जप,तप में अपना जीवन लगाते हैं, वे श्री हरि की किरपा से इस भवबन्धन के इस सागर से तर जाते हैं।इस संसार में दो प्रकार के जीव रहते हैं। एक तो वह जो सोचते हैं कि खा, पीओ मौज करो कल किसने देखा है। उन जीवों को मृत्यु के पश्चात कई भावनाओं को पावन करना पड़ता है। दूसरे वह जो प्रभु की भक्ति में लीन रहते हैं। वह इस संसार को छोड़ने के बाद भगवद धाम को प्राप्त होता है। भगवान की भक्ति का उदय भक्तों की संगम में रहकर होता है। भगवान की भक्ति करने से दुखों का नाश होता है। जिस स्थान पर भक्ति होती है, उस स्थान पर भगवान स्वयं आ जाते हैं।
जय श्री राधेकृष्ण जी।श्री हरि आपका कल्याण करें।



Great sages have said that the people in whose mind the flame of devotion to God burns, they are very fortunate, because devotion to God also comes only by the grace of God. Three achievements are very rare in this world:- First, to get a human birth; Because it is god-rare. Devyoni is the enjoyment-vagina, as long as the fruit of good deeds is left, Devyoni cannot end. Here, as long as the fruits of sinful deeds remain, one cannot get a human birth. It is possible only by the grace of God. That’s why Goswami ji says.. that….. ‘Bade Bhaag Manush Tanu Pava’. It is difficult to get the satsang of any other true saint; Because this world is the field of action. In this man gets involved in visible, but ultimately painful deeds. First of all it is difficult to meet saints. Even if found, it is difficult to recognize them. That’s why Goswami ji has said…… ‘Without Harikrupa, there is no Santa’. Thirdly, it is difficult to be interested in God. As easy as attachment to the subjects of the world is, attachment to hymns is as difficult. That’s why Lord Shankar says to Mother Parvati….. ‘Sunhu Uma te log abhagi. Hari Taji hohin subject lover. Unfortunate indeed are those people who don’t worship Bhagwad after getting human body, and abandoning Hari and become attached to the subjects. By grace, we cross this ocean of material bondage. There are two types of living beings in this world. Firstly, those who think that eat, drink and have fun, who has seen tomorrow. Those creatures have to purify many feelings after death. Others are those who are engrossed in the devotion of the Lord. He attains the abode of God after leaving this world. Devotion to God arises by living in the confluence of devotees. Worshiping God destroys sorrows. The place where there is devotion, God himself comes to that place. Jai Shri Radhekrishna ji. May Shri Hari bless you.

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