भक्ति में सरलता

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भगवान की सच्ची भक्ति के लिए हमे कहीं भी जाने की जरूरत नहीं है।  कुछ ही समय भगवान का नाम लेना दिपक जलाने में भक्ति की पुरणता नहीं है।

जिसके दिल में भगवान से मिलन की तङफ जागृत होगी वही भक्ति कर सकता है। भक्ति का मार्ग अन्तर्मन का मार्ग है। सच्ची भक्ति के लिए हमे चोले को धारण करने की जरूरत नहीं है। भक्ती के लिए घर एक ऐसी जगह है। जंहा  किसी भी बात का दिखावा नहीं चलता है।

घर कर्म भूमि हैं। हम सोचते हैं बैठ कर माला जप करते हुए भगवान हमे दर्शन दे जाऐगे । जिसके दिल में लग्न का दिपक जल जाएगा तभी भक्ति कर पाएंगे।

हर क्षण हमारी एक ही पुकार कैसे प्रभु प्राण नाथ को ध्यालु मै।पग पग पर पहरेदार खङे होगे। ध्यान चुकते ही गिर जाऐगे। कभी शरीर से टुटेगे तो कभी मन से टुट जाएगे। ऐसे ठोकर खा कर ही चमकेगे।

एक दिन ऐसा आयेंगा भक्त कहेगा तु मुझे कैसे भी रख मै तेरी रजा मे रजामन्द हूं ।परमात्मा की याद में शरीर को भुल जाऐगे प्रभु प्रेम में गहरी डुबकी लगाऐगे ।किरया प्रभु रूप हो जाएगी। हमे भगवान को किरया कर्म में ढुढना है।

भगवान के नाम की ऐसी धुन लग जाएंगी भोजन कर रहे हैं। भोजन करते हुए अन्दर झांक कर देखेगे भगवान नाथ की पुकार चल रही है। अन्दर परमात्मा के नाम को सुनकर परमात्मा के चिन्तन मन्न में खो जाती हूं।


हमारे मन में दिल में भगवान से मिलन की तङफ बढे। भगवान के दर्शन की जिस आत्मा की पुकार बन जाती है। उसका तन तन नहीं रहता है।  मन मन नहीं रहता है। उसके रोम रोम में परम पिता परमात्मा के नाम की झंकार पैदा हो जाती है।जय श्री राम अनीता गर्ग

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