चार प्रकार की कृपा

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मानव जीवन में जब कोई चार प्रकार की कृपा को प्राप्त होते हैं तब वह पूर्ण कल्याण को प्राप्त हो जाता हैं
चार प्रकार की कृपा इस प्रकार हैं 1हरि कृपा 2गुरु कृपा 3शास्त्र कृपा और 4 स्वयं कृपा इनमें से सबसे महत्वपूर्ण कृपा है स्वयं पर कृपा स्वयं कृपा से तात्पर्य है कि जब व्यक्ति स्वयं पर कृपा करता है अर्थात छल छिद्र लोभ मोह ईर्ष्या द्वेष से रहित होकर अपने जीवन को जीता तब उसको शास्त्र की कृपा होती है यानी उसको वास्तविकता सममझ आती है जब उसको वास्तविकता समझ आती है तब शुभकर्म पौरुष गामी होता है जब वह शुभ कर्म पौरुष गामी होता है तब उस पर सदगुरु कृपा होती है जब उस पर सदगुरु कृपा होती है तब वह तत्व को जानने वाला हो जाता है जब वह तत्व को जानने वाला होता है तब उस पर हरि कृपा होती है और जब उस पर हरि कृपा होती है तब वह स्वयं ब्रह्म के समान हो जाता है
तो बिना स्वयं पर कृपा किए आप शास्त्र सद्गुरु हरि कृपा से वंचित ही रहेंगे इसलिए पहले स्वयं पर कृपा करो नेकी ईमान की राह पर चलो



When one receives four types of grace in human life, then he attains complete welfare. The four types of grace are as follows: 1 Hari Kripa 2 Guru Kripa 3 Shastra Kripa and 4 Swayam Kripa The most important of these is Kripa (Kripa) on oneself. When he lives life, he is blessed by the scriptures, that is, when he understands the reality, then when he understands the reality, then the good deeds become masculine. Then he becomes the knower of the Tattva, when he is the knower of the Tattva, then he is blessed with Hari, and when Hari Kripa is on him, he himself becomes equal to Brahman. So without having mercy on yourself, you will be deprived of the grace of the scriptures, Sadguru Hari, so first, please yourself and follow the path of righteous faith.

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