दिल वृन्दावन

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परम पिता परमात्मा को प्रणाम है। हे परमात्मा जी आज मेरा दिल बार-बार तुमसे ये पुकार कर रहा है कि हे ये शरीर ही वृन्दावन बन जाए। ये किरतन ये भजन ये परमात्मा का वन्दन और चिन्तन शरीर रूपी वृन्दावन में हो। शरीर रूपी वृन्दावन में मेरे प्रभु भगवान विराजे हुए हैं। ये आंखें प्रभु भगवान के चरणों में नतमस्तक होकर मेंरे स्वामी भगवान् नाथ का वन्दन करे। कान परमात्मा के चरणों में स्थिर हो जाए।     
हम मन्दिर में जाते हैं सभी परमात्मा का वन्दन करते हैं। इसी प्रकार इस शरीर रूपी वृन्दावन में आंख, कान, जिव्हां और हाथ मिलकर प्रभु भगवान का वन्दन करे। मेरे परम पिता परमात्मा की स्तुति करे। इस वृंदावन के हदय रूपी घर में प्रभु भगवान विराजमान है। शरीर का प्रत्येक अंग मिलकर भगवान नाथ की स्तुति करे। शरीर रूपी वृन्दावन में पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश शरीर धारण कर के परम पिता परमात्मा की स्तुति करे कि हे प्रभु, हे स्वामी भगवान् नाथ ये आपका ही निवास स्थान है। हे परमात्मा जी मुझ पर कृपा दृष्टि बनाए रखना। हे प्रभु जब से आपने निवास किया इस दिल में सब शुभ गुण प्रवेश कर गये ये सब आपकी कृपा का फल है। प्रभु ये शरीर न शरीर रहकर परमात्मा का धाम बन जाए। शरीर के प्रत्येक अंग से क्रम इन्द्रीयों से ज्ञान इन्द्रीयों से कण्ठ से रोम रोम से प्रभु भगवान की नाम ध्वनि निकले।



Salutations to the Supreme Father, the Supreme Soul. O God, today my heart is calling you again and again that this body should become Vrindavan. May this kirtan, this hymn, worship and contemplation of God be in Vrindavan in the form of a body. My Lord God is seated in Vrindavan in the form of a body. Let these eyes bow down at the feet of the Lord and worship my lord Bhagwan Nath. Let the ear be fixed at the feet of God. We all go to the temple and worship the Supreme Soul. Similarly, in this body form in Vrindavan, with eyes, ears, tongue and hands, one should worship the Lord. Praise my Supreme Father, the Supreme Soul. Lord God is seated in the heart-shaped house of this Vrindavan. Every part of the body should praise Lord Nath together. Wearing earth, water, air, fire and sky in the form of a body in Vrindavan, praise the Supreme Father, the Supreme Soul, that this is your abode, O Lord, Lord Lord Nath. O God, keep a watchful eye on me. Oh Lord, since you resided in this heart all the good qualities have entered, all these are the fruits of your grace. Lord, this body should not remain the body and become the abode of God. From every part of the body, from the senses, from the senses, from the senses, from the throat, the sound of the name of the Lord came out.

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