1 सर्वज्ञ -ईश्वर में शुद्ध सतोगुण पाया जाता है इसलिए ईश्वर सर्वज्ञ है और जीव अल्पज्ञ है , जितना सतोगुण अधिक होगा उतना आत्मा/ब्रह्म स्वरूप का बोध होगा और ईश्वर तो शुद्ध सतोगुण माया से परिपूर्ण है जिस कारण ईश्वर अनन्त ज्ञानी एवम् सर्वज्ञ है पर जीव में मलिन रज तम भी है अतः जीव अल्प ज्ञानी है।
2 सर्वशक्तिमान – शक्ति का अर्थ माया भी होता है और माया ईश्वर के अधीन होने से ईश्वर माया से कुछ भी कर सकता है इसीलिए ईश्वर सर्व शक्तिमान है पर जीव माया के अधीन होने से अल्प शक्ति वाला है।
3 ईश्वर एक है- जीव अनेक हैं ईश्वर एक है क्योंकि ब्रह्म जब माया द्वारा सृष्टि रचना पालन संहार करता है तो वह ईश्वर कहलाता है और माया एक है अतः ईश्वर भी एक है पर जीव अनेक हैं क्योंकि माया अनेक/अनंत अविध्या रूपी स्वरूपों को प्रकट करती है इन्हीं अविध्या में ब्रह्म का प्रतिबिंब पड़ने से अनेक अनंत जीव प्रकट होते हैं इसलिए जीव अनेकअनंत हैं पर ईश्वर एक है।
4 स्वाधीनता – जीव , ईश्वर और माया के अधीन है स्वतंत्र नहीं है पर माया ईश्वर की शक्ति होने से ईश्वर पूर्णतः स्वतंत्र है, जीव माया के तीन गुणों के अधीन होने से स्वतंत्र नहीं है जब तक वह अपने वास्तविक स्वरुप आत्मा का साक्षात्कार न कर ले तब तक जन्म मृत्यु के बंधन में बंधा हुआ पराधीन है पर ईश्वर किसी के अधीन नहीं है ईश्वर सदैव अपने आत्म स्वरूप में स्थित रहता है।
5 आत्म स्वरूप का बोध- जीव को अपना वास्तविक स्वरुप आत्मा का बोध न होने से जीव अपने स्वरूप से अनभिज्ञ है उसका स्वरूप उसके लिए परोक्ष है पर ईश्वर में शुद्ध सतोगुण होने से ईश्वर स्वयं के ब्रह्मआत्म स्वरूप को जानता है पर जीव नही जानता।
6 सामर्थ्यता- जीव ईश्वर की तरह पूर्णतः सामर्थ्यवान नहीं है, ईश्वर माया को अपने अधीन रखते हुए असाधारण कार्य कर सकता है प्रकृति के नियमों से उपर के कार्य कर सकता है जीव माया के अधीन होने से प्रकृति के सभी नियमों में बंधा हुआ है पर ईश्वर असीम सामर्थ्य वान है क्योंकि माया/शक्ति ईश्वर के अधीन है।
7 सर्व व्यापी – ईश्वर सर्व व्यापक है पर जीव सीमित है एक जगह पर एक समय ही रह सकता है पर ईश्वर हर समय हर जगह विद्यमान है, जीव सर्व व्यापी नहीं है माया के सीमित दायरे में है क्योंकि जीव अनेक हैं निश्चित काल , देश , अवस्था, परिस्थिति के अधीन है पर ईश्वर माया पति होने से सर्व व्यापी है पहले शुद्ध ब्रह्म माया के साथ मिलकर ईश्वर का रूप धारण करता है पश्चात् जीव जगत में परिवर्तित हो जाता है तो भी ईश्वर अपने ऐश्वर्य अस्तित्व में बना रहता है।
8 सतोगुणी माया उपाधि – ब्रह्म का शुद्ध सतोगुणी माया पर पड़ने वाला चैतन्य ईश्वर है इसीलिए ईश्वर सतोगुणी माया उपाधि वाला है , और स्वरूप से ब्रह्म या आत्मा ही है ईश्वर को अपने स्वरूप का बोध है पर जीव को नहीं जिस कारण ईश्वर सृष्टि करता हुआ भी अकर्ता है निष्काम है अपने स्वरूप में स्थित है।
ये 8 मुख्य गुण धर्म है जिनके कारण ईश्वर और जीव में भेद है ,, वास्तव में एक ब्रह्म ही माया की उपाधि धारण कर ईश्वर बन जाता है वही ब्रह्म अविद्या की उपाधि धारण कर जीव बन जाता है अतः जीव यदि अविध्या रुपी अज्ञान के बंधन को काट दे तो जीव भी तत्व से वही ब्रह्म है ,, यदि जीव अपने आत्मा का साक्षात्कार कर ले वह अपने सच्चिदानंद स्वरुप को प्राप्त हो जायेगा..!!जय श्री कृष्ण