दुसायत मोहल्ला, श्रीबाँके बिहारी जी की गली में एक छोटा सा आश्रम है “सुखनिवास” ।
हरि जी ! भजन कीर्तन संतों का भण्डारा है दुसायत में , आपके लिए विशेष कहा है …क्या आप चलेंगे ? गौरांगी ने फ़ोन करके मुझ से पूछा था । गौरांगी ! “वैदेही की आत्मकथा” की प्रूफ़ देखने में इन दिनों मैं इतना व्यस्त हूँ किसी से बात करने की फुर्सत नही है । कहाँ भण्डारा ? मैं नही जा पाऊँगा गौरांगी । मैंने मना कर दिया । पर तुम भी तो नही जाती थीं भण्डारे आदि में …..फिर अब क्या हुआ ? मैंने गौरांगी से ही पूछा । नही सुखनिवास में भण्डारा है ….वैसे मुझे भण्डारा नही पाना …बस विदेहनन्दिनी जू के चरण चिन्ह के दर्शन करने हैं …..गौरांगी बोली ।
विदेहनन्दिनी ? श्रीजानकी जी के चरण चिन्ह श्रीवृन्दावन में ? मैं चौंका …फिर मैंने कहा पत्थर में किसी श्रीराम भक्त ने चरण चिन्ह को उकेर कर पूजा में रखा होगा । नही , स्वयं ही प्रकट हैं वो चिन्ह …..गौरांगी बोली थी….मैं कुछ और कहता उससे पहले ही उसने पूछ लिया …हरि जी ! कोकिल जी का नाम सुना है ? मैंने कहा हाँ , सुना तो है …स्वामी श्रीअखण्डानन्द जी ने उनका उल्लेख किया है …..श्रीउड़िया बाबाजी जब थे तब वे नित्य उनके सत्संग में जाते थे ….हाँ , वही कोकिल जी….हरि जी ! सुनो ना , यहीं आजाओ ….मोबाईल में क्या ज़्यादा बातें करें ।
ठीक है …..मैंने मोबाईल रख दिया और …अति व्यस्तता होते हुये भी “भक्त चर्चा” का मोह त्याग न सका मैं, और गाड़ी लेकर चल दिया था ।
कोकिल साँई !
सिन्ध प्रान्त में इनका जन्म 1942 में हुआ था ….सिन्धी शरीर था इनका ।
इनके माता पिता जन्मते ही पधार गये थे …..गुरु ने इनको पाला पोसा ।
गुरु भक्ति इनकी दृढ़ थी ….उसी का प्रभाव ऐसा हुआ कि श्रीरघुनाथ जी के चरणों में इनका अनुराग हो गया …..गुरुदेव इनके हिन्दी और संस्कृत के परम विद्वान थे अपने शिष्य कोकिल को भी उन्होंने हिन्दी और संस्कृत की अच्छी शिक्षा दी ।
इनके गुरुदेव श्रीरघुनाथ जी के परम भक्त थे …..उन्हीं के भाव में निरन्तर डूबे रहते थे ..वाल्मीकि रामायण से उन्हें बड़ा प्रेम था ….कोकिल को ये रामायण सुनाते …और स्वयं उनसे सुनते ।
गुरुदेव ही इनके सब कुछ थे ….ये हृदय से पूर्णगुरु भक्ति कर रहे थे ….इसका फल तो मिलता ही है ….गुरुभक्ति का फल तो अद्भुत है …..और वो फल इनको मिला – एक दिन रात्रि में वाल्मीकि रामायण अपने गुरुदेव को सुनाते सुनाते कोकिल सो गये थे …उस समय कोकिल की आयु ग्यारह वर्ष की थी । रामायण का प्रसंग चल रहा था कि श्रीरघुनाथ जी ने सीता जी का परित्याग कर दिया है ।
बाल हृदय ….और उसमें भी बालभक्त हृदय ….सपना आया कोकिल को ।
वाल्मीकि आश्रम में श्रीसीता जी हैं …..वाल्मीकिऋषि सामने खड़े हैं जगत्जननी के रोम रोम से “श्रीराम श्रीराम श्रीराम” की ध्वनि प्रकट हो रही है …..जनक दुलारी की ये स्थिति देखकर ऋषि वाल्मीकि रो रहे हैं …..आश्रम में रह रहीं तापस तापसी सब रो रही हैं ……पशु पक्षी तक व्याकुल हो उठे हैं …..श्री विदेहनन्दिनी धरती में गिर पड़ी हैं ….उनके स्वाँस से अभी भी – हे हृदयेश्वर ! हे प्राणेश्वर ! यही निकल रहा है ।
स्वप्न में ये दृश्य देखकर कोकिल जी की नींद टूट गयी थी ….पर ये क्या ! सामने जनक राज दुलारी खड़ी हैं ….कोकिल से रहा नही गया ….वो साष्टांग लेट गये किशोरी जू के चरणों में ।
पर अब ये विरह असह्य था …..इसलिये इनका रुदन बन्द ही नही हुआ ……बार बार वाल्मीकि का आश्रम इनको याद आये ….वहाँ जनक दुलारी सुकुमारी कैसे रहती होंगी ….यही सोच इनके मन से जा ही नही रही …..वो झाँकी ! जो स्वप्न में नही जागने पर जानकी जी ने प्रत्यक्ष दर्शन दिये थे ….ओह ! अब या तो श्रीकिशोरी जी मिलें या ये प्राण छूटें ।
इनकी ऐसी भाव पूर्ण अवस्था तीन महीने तक रही …..अब तो मर जाऊँगा जब तक स्वामिनी सिया जू नही मिलेंगी …..ऐसा विचार करके ये अपने प्राण त्यागने के लिये तैयार ही थे कि एक अलौकिक वाणी हृदय में कोकिल के गूंजी …..
“नित्य तुम जहां स्नान करते हो ….वहीं धरती खोद के देखना”
ये वाणी भी किशोरी जू की थी ….उठकर उन्होंने वहीं की धरती को जब खोदा तब उन्हें वहाँ सोने की डिब्बी में एक विलक्षण भोजपत्र मिला , उसमें सिया जू के चरण चिन्ह बने हुये थे ।
आहा ! इन्हें और कुछ चाहिये भी नही था ……इन्हें अपनी सिया जू ही मिल गयीं थीं ।
उस समय इनको जनक जी का आवेश भी आया ….अपनी ही कुटिया में एक पालना बनाकर इन्होंने बड़ा लाढ किया ….ये उन चरण चिन्हों को अपने छाती से चिपका कर रखते थे ।
पता है हरि जी ! वृन्दावन में ही आकर उन्होंने जब यहाँ आश्रम बनाया तो यहीं स्थापित किया था उन चरण चिन्हों को ।
गौरांगी मुझे ये सब बता रही थी ।
गौरांगी ! पर ये सिया जू के भक्त वृन्दावन में क्यों आये ? मैंने ऐसे ही पूछ लिया ।
चलें , वहीं सुखनिवास में ,
श्रीकिशोरी जू के चरण चिन्ह के दर्शन भी हो जाएँगे और प्रसाद भी ले लेंगे ।
और भक्त कोकिल जी के आगे का प्रसंग आप वहीं सुन लेना । गौरांगी ने कहा ।
हाँ , चलो ……अब हम दोनों “सुख निवास” ( दुसायत मोहल्ला ) की ओर चल दिये थे ।
शेष कल –