राहु के कारण जीवन में समस्या बताई गई है ??
उपाय भी मन से कर रहे या किया पर कोई लाभ नही ??
पर
समस्या वास्तव में है क्या ….
समझिए….
राहु वेदांगानुसार ग्रह नही है,
पश्चात भी यह केवल छाया के रूप में स्थापित हुआ
अर्थात् भाव से देखने वालों के लिए यह है कि
जिस ग्रह के साथ है या जिस ग्रह के स्थान में है
जो फल उसका होगा,
राहु उसके फल में वृद्धि या कमी करेगा…
केवल यहां तक सीमित था…
फिर जब नौ ग्रह संख्या स्थापित हुई व नक्षत्रों के साथ
विद्वानों नें इनका समन्वय स्थापित किया तो राहु को
तीन नक्षत्रों का स्वामित्व दिया गया…
वेदांग ज्योतिष में ग्रह अनुसार कोई फलादेश नही होता, फलकारक केवल नक्षत्र है…
ग्रह केवल नक्षत्र के अधीन कार्यरत है…
उनका अपना कोई कार्य नही…
फिर
कुछ धूर्त पाखंडियों को यह ज़्यादा आय का साधन
प्रतीत हुआ तो स्वयं की पुस्तकें संहिता नाम से
प्रकाशित की गई, जिन्होंने बाद में वास्तविक संहिताओं
को विलुप्त कर दिया व इन्हीं पुस्तकों को बड़े-बड़े व महान
विद्वान भी वास्तविक संहिताएं समझने लगे….
अब राहु जिसका कोई कार्य नही था व जो वेदांग में ग्रह
ही नही है वह सबसे भयानक ग्रह व सबसे दुखदाई ग्रह
बन गया…
इसी के नाम से अब धूर्त ज्योतिषियों की कमाई
फलने लगी….
अब करते हैं राहु की व्याख्या-
राहु समन्वयता में केवल तीन नक्षत्र शासक है-
आर्द्रा-स्वाति व शतभिषा
तीनों नक्षत्र अशुभ फलदायक है..
जब जीवन में इनका समय आता है तो अशुभता में
बहुत वृद्धि होती है इसलिए इनको राहु का शासन
दिया गया जो अशुभता के प्रतीक के तौर पर है…
राहु उस अशुभ समय का कारक नही है बल्कि
केवल प्रतीक है…
तो यदि राहु की अशुभता बताई जाती है तो वह
राहु की नही इन तीन में से किसी नक्षत्र की
अशुभता है…
कैसे पता चले…??
सामान्यतः आर्द्रा नक्षत्र मिथुन में आता है तो जहां
3 नं० लिखा हो वहां की अशुभता का कारक आर्द्रा
नक्षत्र है…
स्वाति तुला में 7 नं०
शतभिषा कुंभ में 11 नं०
जहां राहु स्वयं है वहां की अशुभता भी राहु नही
कर सकता.. यह प्रमाणित है…
तो यदि आप राहु के कहीं बैठे होने पर वहां के उपाय
कर रहे हैं तो आप किसी गलत स्थान पर परामर्श
ले रहे हैं…
अपना ज्योतिषी बदले ….. जिसने वास्तविक ज्योतिष
पढ़ा हो ना कि जिसके गुरू ने नक़ली संहिता पुस्तकों
से उसे सिखाया हो व केवल लूट कर रहा हो….