प्रणाम साधना 3

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जय श्री राम प्रभु प्राण नाथ को प्रणाम है ।प्रणाम करना हमारी संस्कृति है। प्रणाम साधना  है। हम प्रणाम परमात्मा को भजते हुए करते हैं हमारे अन्दर प्रणाम की साधना अपने आप आ जाती है। साधक जान जाता है कि यदि तु भगवान को लगन से भजता नहीं है तब तुझमें प्रणाम का भाव भी विकसित नहीं होता है। हम भगवान को भजते हुए जगत पिता को बार बार प्रणाम करते हैं। हाथ अपने आप जुड़ने लगते हैं। हम हाथ किसी के सामने जोङते है। लेकिन अन्तर्मन कहता है कि मैं ये प्रणाम जगत पिता को करता हूं। सब में प्रभु प्राण नाथ बैठे हैं। भक्त भगवान के सामने एक एक घंटा खङा प्रणाम करता है फिर भी दिल तृप्त नही होता है फिर प्रणाम करता है ऐसे प्रणाम करते हुए भाव की उत्पत्ति हो जाती है कि जगत का पालन हार सब में समाया है। भक्त जङ चेतन दोनों में भगवान को निहारते हुए नतमस्तक हो जाता है परम पिता परमात्मा को प्रणाम करता है ।जय श्री राम

अनीता गर्ग



Salutations to Jai Shri Ram Prabhu Pran Nath. It is our culture to salute. Gratitude is meditation. We do salutations while worshiping God, the practice of salutation automatically comes within us. Sadhak knows that if you do not worship God diligently, then even the sense of pranam does not develop in you. We worship the Father of the world again and again while worshiping God. Hands start joining automatically. We join hands in front of someone. But the conscience says that I offer this obeisance to the father of the world. Lord Pran Nath is sitting in everyone. The devotee bows in front of the Lord for an hour, yet the heart is not satisfied, then he bows down, while doing such obeisances, a feeling is generated that the maintenance of the world is lost in everyone. The devotee, while looking at God in both the conscious, bows down and bows to the Supreme Father, the Supreme Soul.Jai Shri Ram

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