परम पिता परमात्मा का प्रेम ही ऐसा है कि संसार में छुपाए छुप नहीं सकता है। एक प्रभु प्रेमी अपने भगवान को माला के मनके में न खोजकर दिल की गहराई में खोजता है।
प्रभु से प्रेम करने वाला जानता है कि प्रभु प्रेम अपने स्वामी के बीच में आने वाली पतली सी झीली को भी बर्दाश्त नहीं करता है। गोपियां हर क्षण भगवान कृष्ण के भाव में रहती है उन्हें अपने आप का होश नहीं रहता है वे शरीर तत्व से ऊपर उठ जाती है जिधर दृष्टि जाती तुम ही नजर आते हो।
सच्चे प्रेमी समय के बन्धनों में नहीं बधंते है। वह तो हर क्षण परमात्मा के नाम की पुकार लगाते हुए जीवन को प्रभु चरणों में समर्पित किया करते हैं। माला का मनका दिल के द्वार से बहुत दूर है।
दिल मे जब प्रभु मिलन की तङफ बढ जाती है तब शरीर को होश नहीं रहता है। पल पल याद प्रभु की आती है। अहो मेरे स्वामी कैसे होंगे कब मेरा भगवान नाथ श्री हरि से मिलन होगा ।क्या कभी मेरे स्वामी भगवान की भी मुझसे मिलन की इच्छा जागृत होती होगी। कब ये नयन तृप्त होगे ।हम प्रभु भगवान दर्शन की तङफ हृदय में जागृत करते हुए प्रभु भाव मे जीवन व्यतीत करे। ऐसे भक्त शरीर के अधीन नहीं होते हैं प्रभु प्राण नाथ को हृदय में बिठाते है
कभी मै मेरे स्वामी भगवान् नाथ को पहचान ही न पाऊं वो आये ओर आकर चले जाएं। क्योंकि अभी तक इतने जीवन बीत गए स्वामी से बिछङे हुए ।
मेरे स्वामी लीलाधारी है। कब कोन सी लीला रच कर चले जाऐ। अ दिल तु सम्भल के रहना रात दिन नींद में भी पुकार प्रभु की लगा लेना। आत्मा की पुकार में शरीर नहीं है। जय श्री राम अनीता गर्ग