सभी रूप में एक ही है

भक्तों के मन में एक जिज्ञासा रहती है कि हमारे रामजी बारह कला संपन्न हैं और श्रीकृष्ण सोलह (पूर्ण) कलाओं से सुशोभित हैं।

क्या भगवान राम कृष्णजी से दुर्बल हैं? प्यारे भक्त मन में यह प्रश्न रखते हैं किंतु पूछ नहीं पाते हैं। गुरुजनों से प्राप्त ज्ञान के आधार पर समाधान करते हैं।

इसे ऐसे समझना चाहिए कि चार किलो आटे से बनने वाली रोटी और छः किलो आटे से बनने वाले रोटी, दोनों ही पूर्ण होती हैं। जिस समय जितनी रोटियों की आवश्यकता होती है, उतना ही आटा लिया जाता है।

‘मर्यादा’ पुरुषोत्तम होने के कारण भगवान विष्णु ने अपने कई गुणों को खुलकर प्रकट नहीं किया।

जिन लीलाओं को वे श्रीरामरूप में नहीं कर पाए, वे सब उन्होंने श्रीकृष्ण अवतार में किया। क्यों? अपने भक्तों की कामना पूर्ण करने हेतु।

भगवान जब वैकुंठ में होते हैं तब अष्टभुजा होती हैं, वही भगवान जब क्षीरसागर में देवताओं से सभा-चर्चा-भेंट करते हैं तब चतुर्भुजरूप में विराजते हैं।

वही भगवान जब श्रीराम-कृष्ण-नृसिंह इत्यादि के रूप में अवतार लेते हैं तब दो भुजा होती हैं और जब वही भगवान महाप्रभु जगन्नाथजी के रूप में प्रकट होते हैं तब आधी भुजाएँ होती हैं। नारायण जब शालीग्राम बनते हैं तब भुजविहीन होते हैं।

अतः सभी भगवान एक ही हैं। इसलिए श्रीराम-कृष्ण-परशुरामजी इत्यादि को छोटा-बड़ा या कम-अधिक नहीं समझना चाहिए। ऐसा मानना अज्ञानता और भारी दोष है।

सीताराम सीताराम 🙏
नमः पार्वतीपतये हर हर महादेव 🚩

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