|| श्री हरि: ||
गत पोस्ट से आगे…………
भगवान् के तत्व-रहस्य-गुण लीला की बातें ऐसी है कि उनको समझ लेने पर फिर उन्हें छोड़ नहीं सकते | उसमे डुबकी लगानी चाहिये | साक्षात अलौकिक रूप है, उसमे तन्मय हो जाना चाहिये |
हमको समझना चाहिये, वह आनन्द, ज्ञान, तत्व, रहस्य, प्रभाव क्या है ? महान प्रभु का साक्षात निराकार स्वरूप ही रंग है | रंग के हौद में कपड़ा डुबो दे तो अणु-अणु में रंग प्रविष्ट हो जाय |
वैसे ही परमात्मा के स्वरूप की चेतना, शान्ति हमारे अन्दर प्रविष्ट हो गयी | परमात्मा के रंग में रँगकर तृप्त हो गये | वह रंग आया कहाँ से ? परमात्मा जो सामने खड़े हैं उनसे |
चन्द्रमा जैसे चाँदनी को फैला रहे हैं, अमृत की वर्षा करते हैं, वैसे ही परमात्मा अमृत की तरह शान्ति, आनन्द, प्रेम की वर्षा कर रहे हैं, हम उसमे डूब रहे हैं |
चन्द्रमा से अमृत चू रहा है, वैसे ही आकाश में परमेश्वर खड़े हैं, उनसे प्रेम, आनन्द की वर्षा हो रही है | जैसे सागर में बर्फ को डुबो दे, वैसे ही हम उसमे डूब रहे हैं | ऐसे डूबे हुए हैं जैसे रंग की हौद में कपड़े को डुबा दें | सर्वत्र रंग-ही-रंग हो जाय | चेतना रूप जल में घुले हुए रंग में ऐसे रँग गये हैं कि बस उसके सिवाय कुछ नहीं है |
तन्मय होकर आनन्दरूप हो रहे हैं | यहाँ से चलते हैं, वह इष्ट रूप साथ-साथ चलता है | उसके दर्शन, भाषण, स्पर्श से उतरोतर इतने मुग्ध हो रहे हैं कि अपने को ही भूल गये हैं | उसके सिवाय न कोई दूसरी चीज दिखती है और न अनुभव होती है | सीयावर रामचन्द्र की जय |
शान्ति: ! शान्ति: !! शान्ति: !!!
गीताप्रेस, गोरखपुर द्वारा प्रकाशित जयदयाल गोयन्दका की पुस्तक भगवान् कैसे मिलें ? (१६३१) से |
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, Sri Hari: || Continuing from last post………… The things of God’s element-mystery-qualities-Leela are such that once you understand them, you cannot leave them. One should take a dip in it. It is actually a supernatural form, one should become engrossed in it.
We should understand, what is that joy, knowledge, element, secret, effect? The visible formless form of the great Lord is the colour. If you dip a cloth in a vat of colour, then the color enters every molecule.
Similarly, the consciousness of God’s form, peace entered into us. Satisfied by being painted in the color of God. Where did that color come from? From those who are standing in front of God.
Just like the moon is spreading moonlight, showering nectar, similarly God is showering peace, joy, love like nectar, we are drowning in it.
The moon is sucking nectar, similarly God is standing in the sky, showering love and joy from Him. Just like drowning ice in the ocean, we are drowning in it. Immersed like a cloth dipped in a pot of paint. May there be color everywhere. The form of consciousness has been colored with the color dissolved in water in such a way that there is nothing but it.
By being tense, you are becoming blissful. Let’s go from here, that favored form walks together. They are becoming so fascinated by his vision, speech and touch that they have forgotten themselves. Apart from Him, nothing else is seen or experienced. Hail Siyavar Ramchandra | Shanti: ! Shanti: !! Shanti: !!! How to meet God by Jaidayal Goyandka, published by Geetapress, Gorakhpur? (1631) to | — :: x :: — — :: x :: —