तीनों लोक  प्रभु का यशगान करे।

जय श्री रामभक्त हनुमान

हनुमानजी हर घर में भगवान रामजी का यश चाहते हैं, जब लंका में हनुमानजी जानकीजी के पास बैठे थे और जानकी माँ स्वयं रो रही थीं तब हनुमानजी ने कहा माँ वैसे तो मैं आपको अभी ले जा सकता था, परन्तु मैं चाहता हूँ कि सारा जगत्, तीनों लोक मेरे प्रभु का यशगान करे।

अबहि मातु मैं जाऊँ लैवाई।
प्रभु आयसु नहिं राम दुहाई।।

कछुक दिवस जननी धरू धीरा।
कपिन्ह सहित अइहहिं रघुबीरा।।

निसिचर मारि तोहि ले जैहहिं।
तिहुँ पुर नारदादि जस गैहहिं।।

भगवान् श्री भरतजी से कहते हैं कि रघुवंश की इकहत्तर पीढियाँ भी हनुमान की सेवा में लग जायेंगी, तो भी हे भरत! रघुवंशी हनुमान के इस ऋण से उऋण नहीं होंगे, भगवान कहते हैं कि हनुमान अगर तूने अपना यश त्याग दिया तो मेरा आशीर्वाद है तेरा यश केवल मैं ही नहीं अपितु, “सहस बदन तुम्हरो जस गांवैं” हजारों मुखों से शेषनाग भी जिनका यश का गुणगान करते हैं।

महावीर विनवउँ हनुमाना।
राम जासु जस आपु बखाना।।

गिरिजा जासु प्रीति सेवकाई।
बार बार प्रभु निज मुख गाई।।

वानरों के बीच में भगवान् बैठे हैं तो भगवान् चाहते हैं कि हनुमानजी के गुण वानरों के सामने आयें, भगवान् बोले हनुमान ४०० कोस का सागर कोई वानर पार नहीं कर पाया मैंने सुना तुम बडे आराम से पार करके चले गये ?

हनुमानजी ने कहा, महाराज बन्दर की क्या क्षमता थी, “शाखा से शाखा पर जाई” बन्दर तो इस टहनी से उस टहनी पर उछल कूद करता है यह तो प्रभु आपकी कृपा से हुआ-

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लागिं गये अचरज नाहीं।।

हनुमानजी बोले- प्रभु यह आपकी मुद्रिका थी जिसके कारण मैं सागर पार कर गया।

भगवान् ने कहा- अच्छा मेरी मुद्रिका से सागर पार किया परन्तु मुद्रिका तो आप जानकीजी को दे आये थे, लेकिन जब लौट कर आये तो सागर सिकुड गया था या छोटा हो गया था? हनुमानजी बोले-

‘तोय मुदरि उस पार किये और चूडामणि इस पार’

आपकी कृपा ने तो माँ के चरणों तक पहुंचा दिया और माँ के आशीर्वाद ने आपके चरणों तक पहुंचा दिया।

ऐसे हैं हनुमानजी महाराज, न नाम चाहिये न यश चाहियें, ऐसे भगवान् श्री रामजी के परम भक्त श्री हनुमानजी के नाम के साथ आप सभी का सदैव मंगल हो। ।। श्री हनुमते नमः ।।



Jai Shri Rambhakta Hanuman

Hanumanji wants the fame of Lord Ramji in every house, when Hanumanji was sitting near Janakiji in Lanka and Janaki’s mother herself was crying, then Hanumanji said, Mother, although I could have taken you right now, but I want the whole world, May all three worlds sing praises of my Lord.

Now mother, I will go to Lawai. Lord, I am not crying, I am crying for Ram.

Kachuk Diwas Janani Dharu Dhira. Here is Raghubira with Kapinha

Nisichar mari tohi le jaheehin. Tihunpur Naradadi Jas gahhin.

Lord Shri says to Bharatji that even seventy-one generations of Raghuvansh will be engaged in the service of Hanuman, O Bharat! Raghuvanshi will not be indebted to Hanuman for this debt, God says that Hanuman, if you give up your fame then it is my blessing that your fame is not only mine but also, “Sahas Badan Tumharo Jas Gaon Hain” whose fame even Sheshnag praises with thousands of mouths. Are.

Mahavir Vinav Hanuman. Ram Jasu Jas Apu Bakhana.

Girija Jasu Preeti Sevakai. The Lord sang again and again.

God is sitting among the monkeys, so God wants Hanumanji’s qualities to be revealed to the monkeys. God said, Hanuman, no monkey could cross the 400 mile ocean. I heard that you crossed it very comfortably and went away.

Hanumanji said, Maharaj, what was the ability of the monkey, “jumping from branch to branch”. The monkey jumps from one branch to another, this happened by your grace Lord –

Prabhu Mudrika meli mukha mahi. It is not surprising that water was taken soon.

Hanumanji said – Lord, it was your ring because of which I crossed the ocean.

God said – Okay, you crossed the ocean with my ring, but you had given the ring to Janakiji, but when you returned, had the ocean shrunk or become smaller? Hanumanji said-

‘Toy Mudri crossed that side and Chudamani crossed this side’

Your grace has taken me to mother’s feet and mother’s blessings have taken me to your feet.

Hanumanji Maharaj is like this, neither does he need name nor fame, may you all always be blessed with the name of Shri Hanumanji, a great devotee of Lord Shri Ram. , Shri Hanumate Namah.

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