Thursday, 08 December 2022
आज गोपाल पाहुने आये निरखे नयन न अघाय री ।
सुंदर बदनकमल की शोभा मो मन रह्यो है लुभाय री ।।१।।
के निरखूं के टहेल करूं ऐको नहि बनत
ऊपाय री ।
जैसे लता पवनवश द्रुमसों छूटत फिर
लपटाय री ।।२।।
मधु मेवा पकवान मिठाई व्यंजन बहुत बनाय री ।
राग रंग में चतुर सुर प्रभु कैसे सुख उपजाय री ।।
नियम (घर) का छप्पन भोग, बलदेवजी (दाऊजी) का उत्सव
आज श्रीजी में नियम (घर) का छप्पनभोग है. छप्पनभोग के विषय में कई भावनाएं प्रचलित हैं.
🌺 श्रीमदभागवत के अनुसार, व्रज की गोप-कन्याओं ने श्रीकृष्ण को पति के रूप में पाने की मनोकामना लिये एक मास तक व्रत कर, प्रातः भोर में यमुना स्नान कर श्री कात्यायनी देवी का पूजा-अर्चना की. श्रीकृष्ण ने कृपा कर उन गोप-कन्याओं की मनोकामना पूर्ति हेतु सहमति प्रदान की.
ऐसा कहा जाता है कि किसी भी व्रत के समापन के पश्चात यदि व्रत का उद्यापन नहीं किया जाये तो व्रत की फलसिद्धि नहीं होती अतः इन गोपिकाओं ने विधिपूर्वक व्रतचर्या की समाप्ति और मनोकामना पूर्ण होने के उपलक्ष्य में उद्यापन स्वरूप प्रभु को छप्पनभोग अरोगाया.
🌼 गौलोक में प्रभु श्रीकृष्ण व श्री राधिकाजी एक दिव्य कमल पर विराजित हैं.
उस कमल की तीन परतें होती हैं जिनमें प्रथम परत में आठ, दूसरी में सौलह और तीसरी परत में बत्तीस पंखुडियां होती हैं. प्रत्येक पंखुड़ी पर प्रभु भक्त एक सखी और मध्य में भगवान विराजते हैं.
इस प्रकार कुल पंखुड़ियों संख्या छप्पन होती है और इन पंखुड़ियों पर विराजित प्रभु भक्त सखियाँ भक्तिपूर्वक प्रभु को एक-एक व्यंजन का भोग अर्पित करती हैं जिससे छप्पनभोग बनता है.
🌺 छप्पनभोग की मुख्य पुष्टिमार्गीय भावना यह है कि वृषभानजी के निमंत्रण पर प्रभु नन्दकुमार श्रीकृष्ण अपने ससुराल भोजन हेतु सकुटुम्ब पधारे हैं.
वृषभानजी सबका स्वागत करते हैं एवं विभिन्न प्रकार के व्यंजनों का भोग अरोगाया जाता है. वहीँ व्रजललनाएं मधुर स्वरों में गीत गाती हैं. इसी स्वामिनी भाव से आज कई गौस्वामी बालकों के यहाँ आज प्रभु पधार कर छप्पनभोग अरोगते हैं.
छप्पनभोग के भोग रखे जाएँ तब गदाधरदासजी का पद आसावरी राग में गाया जाता है.
श्रीवृषभान सदन भोजनको नंदादिक सब आये हो l
जिनके चरणकमल धरिवेको पट पावड़े बिछाये हो ll….
इस उपरांत भोजन के एवं बधाई के पद भी गाये जाते हैं.
एक अन्य मान्यता अनुसार श्री वल्लभाचार्य जी और श्री विट्ठलनाथजी,के वक्त सातो स्वरूप गोकुल में ही विराजते थे. अन्नकूट जति पूरा(गिरिराजजी)में होता था सातो स्वरूप पाधारते और साथ में आरोगते थे. एक बार श्रीनाथजी ने श्री गुसाईंजी सु कीनी के बावा में तो भुको रह जात हु ये सातो आरोग जात है तब आप श्री ने गुप्त रूप सु बिना अन्य स्वरूपण कु जताऐ सातो स्वरूप के भाव की विविध सामग्री(या छप्पन भोग में अनेकानेक प्रकार की सामगी,सखड़ी और अनसखड़ी में आरोगे)सिद्ध कराय आरोगायी यादिन श्रीजी में नगाड़े गोवर्धन पूजा चोक में नीचे बजे याको तात्पर्य है कि नगार खाने में ऊपर बजे तो सब स्वरूपण को खबर पड़ जाय जासु नीचे बजे ये प्रमाण है और प्रभु आप अकेले पुरो छप्पन भोग आरोगे और श्री गुसाईंजी पर ऐसे कृपा किये
🌼 पुष्टिमार्ग में प्रचलित एक अन्य प्रमुख मान्यता के अनुसार विक्रम संवत 1632 में आज के दिन नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्री गोकुलनाथजी ने व्रज में गोकुल के समीप दाऊजी नामक गाँव में श्री बलदेवजी के मंदिर के जीर्णोद्धार पश्चात श्री बलदेव जी के स्वरुप को वेदविधि पूर्वक पुनःस्थापना की.
श्री बलदेवजी को हांडा अरोगाया था. तब गौस्वामी श्री गोकुलनाथजी ने विचार किया कि बड़े भाई (श्री बलदेवजी) के यहाँ ठाठ-बाट से मनोरथ हों और छोटे भाई (श्रीजी) के यहाँ कुछ ना हों यह तो युक्तिसंगत नहीं है अतः आपने श्रीजी को मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा को छप्पनभोग अरोगाया एवं छप्पनभोग प्रतिवर्ष होवे प्रणालिका में ऐसा नियम बनाया.
तब से श्रीजी प्रभु को प्रतिवर्ष नियम का छप्पनभोग अंगीकृत किया जाता है वहीँ श्री बलदेवजी में भी आज के दिन भव्य मनोरथ होते हैं, स्वर्ण जड़ाव के हल-मूसल धराये जाते हैं एवं गाँव में मेले का आयोजन किया जाता है.
श्रीजी में विभिन्न ऋतुओं में श्री तिलकायत की आज्ञानुसार मनोरथियों द्वारा भी छप्पनभोग के मनोरथ भी कराये जाते हैं. घर के छप्पनभोग और मनोरथी के छप्पनभोग में कुछ अंतर होते हैं –
🌸 नियम (घर) के छप्पनभोग की सामग्रियां उत्सव से पंद्रह दिवस पूर्व अर्थात मार्गशीर्ष शुक्ल प्रतिपदा से सिद्ध होना प्रारंभ हो जाती है परन्तु अदकी के छप्पनभोग की सामग्रियां मनोरथ से सात दिवस पूर्व ही सिद्ध होना प्रारंभ होती है.
🌸 नियम (घर) के छप्पनभोग ही वास्तविक छप्पनभोग होता है क्योंकि अदकी का छप्पनभोग वास्तव में छप्पनभोग ना होकर एक बड़ा मनोरथ ही है जिसमें विविध प्रकार की सामग्रियां अधिक मात्रा में अरोगायी जाती है.
🌸 नियम (घर) का छप्पनभोग गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में अरोगाया जाता है अतः इसके दर्शन प्रातः लगभग 11 बजे खुल जाते हैं जबकि अदकी का छप्पनभोग मनोरथ राजभोग में अरोगाया जाता है अतः इसके दर्शन दोपहर लगभग 1 बजे खुलते हैं.
🌸 नियम (घर) के छप्पनभोग में श्रीजी के अतिरिक्त किसी स्वरुप को आमंत्रित नहीं किया जाता जबकि अदकी के छप्पनभोग मनोरथ में श्री तिलकायत की आज्ञानुसार श्री नवनीतप्रियाजी व अन्य सप्तनिधि स्वरुप पधराये जा सकते हैं एवं ऐसा पूर्व में कई बार हो भी चुका है.
🌸 नियम (घर) का छप्पनभोग उत्सव विविधता प्रधान है अर्थात इसमें कई अद्भुत सामग्रियां ऐसी होती है जो कि वर्ष में केवल इसी दिन अरोगायी जाती हैं परन्तु अदकी के छप्पनभोग मनोरथ संख्या प्रधान है अर्थात इसमें सामान्य मनोरथों में अरोगायी जाने वाली सामग्रियां अधिक मात्रा में अरोगायी जाती हैं.
श्रीजी का सेवाक्रम – श्रीजी में आज के दिन प्रातः 4.30 बजे शंखनाद होते हैं.
उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
सभी समय यमुनाजल की झारीजी भरी जाती है. चारों दर्शनों (मंगला, राजभोग संध्या-आरती व शयन) में आरती थाली में होती है.
गादी तकिया आदि पर सफेदी नहीं आती. तकिया पर मेघश्याम मखमल के व गदल रजाई पीले खीनखाब के आते हैं. गेंद, चौगान और दिवाला सोने के आते हैं.
मंगला दर्शन पश्चात प्रभु को चन्दन, आवंला एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है.
आज श्रीजी को नियम के तमामी (सुनहरी) ज़री के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर टिपारा के ऊपर रुपहली ज़री के गौकर्ण एवं सुनहरी ज़री का त्रिखुना घेरा धराया जाता है.
श्रृंगार व ग्वाल के दर्शन नहीं खोले जाते हैं.
श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डू, दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी व शाकघर में सिद्ध चार विविध प्रकार के फलों के मीठा अरोगाये जाते हैं.
गोपीवल्लभ भोग में ही छप्पनभोग के सखड़ी भोग निजमंदिर व आधे मणिकोठा में धरे जाते हैं. अनसखड़ी भोग मणिकोठा, डोल-तिबारी व रतनचौक में साजे जाते हैं.
धुप, दीप, शंखोदक होते हैं व तुलसी समर्पित की जाती है. भोग सरे उपरांत राजभोग धरे जाते हैं, नित्य का सेवाक्रम होता है और छप्पनभोग के दर्शन लगभग 12 बजे खुल जाते हैं.
राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता और सखड़ी में पांचभात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात और वड़ी-भात) आरोगाये जाते हैं.
राजभोग दर्शन में प्रभु के सम्मुख 25 बीड़ा की सिकोरी अदकी (स्वर्ण का जालीदार पात्र) धरी जाती है.
आज नियम का छप्पनभोग प्रभु अकेले ही अरोगते हैं अर्थात श्री नवनीतप्रियाजी अथवा कोई अन्य स्वरुप आज श्रीजी में आमंत्रित नहीं होते. यहाँ तक कि अन्य स्वरूपों को पता ना चले इस भाव से आज नक्कार खाने में नगाड़े भी नीचे गौवर्धन पूजा के चौक में बजाये जाते हैं.
श्री नवनीतप्रियाजी के भोग हेतु डला (विविध प्रकार के 56 सामग्रियों का एक छाब) भेजा जाता है.
भोग समय अरोगाये जाने वाले फीका के स्थान पर घी में तले बीज-चालनी के सूखे मेवे अरोगाये जाते हैं.
छप्पनभोग सरे –
कीर्तन – (राग : आशावरी)
श्रीवृषभानसदन भोजन को नंदादिक मिलि आये हो l
तिनके चरनकमल धरिवे को पट पावड़े बिछाये हो ll 1 ll
रामकृष्ण दोऊ वीर बिराजत गौर श्याम दोऊ चंदा हो l
तिनके रूप कहत नहीं आवे मुनिजन के मनफंदा हो ll 2 ll
चंदन घसि मृगमद मिलाय के भोजन भवन लिपाये है l
विविध सुगंध कपूर आदि दे रचना चौक पुराये हो ll 3 ll
मंडप छायो कमल कोमल दल सीतल छांहु सुहाई हो l
आसपास परदा फूलनके माला जाल गुहाई हो ll 4 ll
सीतल जल कुंमकुम के जलसो सबके चरन पखारे हो ।
कर विनंती कर ज़ोर सबन सो कनकपटा बैठारे हो ।।५।।
राजत राज गोप भुवपति संग विमल वेश अहीरा हो ।
मनहु समाज राजहंसनको ज़ुरे सरोवर तीरा हो ।।६।।…..(अपूर्ण)
राजभोग दर्शन –
कीर्तन – (राग : सारंग)
जयति रुक्मणी नाथ पद्मावती प्राणपति व्रिप्रकुल छत्र आनंदकारी l
दीप वल्लभ वंश जगत निस्तम करन, कोटि ऊडुराज सम तापहारी ll 1 ll
जयति भक्तजन पति पतित पावन करन कामीजन कामना पूरनचारी l
मुक्तिकांक्षीय जन भक्तिदायक प्रभु सकल सामर्थ्य गुन गनन भारी ll 2 ll
जयति सकल तीरथ फलित नाम स्मरण मात्र वास व्रज नित्य गोकुल बिहारी l
‘नंददास’नी नाथ पिता गिरिधर आदि प्रकट अवतार गिरिराजधारी ll 3 ll
साज – आज श्रीजी में श्याम रंग की मखमल के ऊपर रुपहली ज़री से गायों के भरतकाम वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.
वस्त्र – आज प्रभु को सुनहरी (तमामी) ज़री का सूथन, चोली, चाकदार वागा धराये जाते हैं. पटका व मोजाजी रुपहली ज़री के व ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.
श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) उत्सववत भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर सुनहरी ज़री की टिपारा की टोपी के ऊपर हीरा का किलंगी वाला सिरपैंच, रुपहली ज़री के गौकर्ण, सुनहरी ज़री का त्रिखुना घेरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. उत्सव की हीरा की चोटीजी बायीं ओर धरायी जाती है.
हीरा का प्राचीन जड़ाव का चौखटा पीठिका के ऊपर धराया जाता है.
कस्तूरी, कली आदि सभी माला धरायी जाती है. श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट उत्सव का व गोटी सोने की कूदती हुए बाघ बकरी की आती है. आरसी ग्वाल में चार झाड़ की व राजभोग में सोने की डांडी की आती है.
Thursday, 08 December 2022
Today Gopal’s guests came with open eyes and no pain. The beauty of the beautiful body and lotus is pleasing to the mind. Should I walk around with tears? Remedy like a creeper swayed by the wind Wrapped up. Made a lot of honey and dry fruits and sweet dishes. Clever tune in the color of melody, how did God create happiness.
Chappan bhog of rule (house), celebration of Baldevji (Dauji)
Today there is Chhappanbhog of rules (house) in Shreeji. There are many sentiments prevalent regarding Chhappanbhog.
🌺 According to Shrimad Bhagwat, the cow-girls of Vraj worshiped Shri Katyayani Devi by taking bath in Yamuna early in the morning, fasting for a month with the wish of getting Shri Krishna as husband. Shri Krishna kindly agreed to fulfill the wishes of those cow-girls. It is said that after the completion of any fast, if Udyapan is not done, then the fast does not get fruitful, so these Gopikas, on the occasion of completion of the fast and fulfillment of their wishes, offered 65 bhogs to the Lord in the form of Udyapan.
🌼 Lord Krishna and Shri Radhikaji are seated on a divine lotus in Goloka. That lotus has three layers in which there are eight petals in the first layer, sixteen in the second and thirty two in the third layer. On each petal, a devotee of the Lord has a friend and God sits in the middle. In this way, the total number of petals is fifty-six and the devotee-friends sitting on these petals devotionally offer each dish to the Lord, which makes Chappanbhog.
🌺 The main affirmative feeling of Chhappanbhog is that on the invitation of Vrishabhanji, Lord Nandkumar Shri Krishna has come to his in-laws’ house for food. Vrishabhanji welcomes everyone and different types of dishes are served. Wherein Vrajalalanas sing songs in melodious voices. With the same sense of ownership, today many Gauswamis come to the children’s place and cure them of chappan bhog. Gadadhardasji’s verse is sung in Asavari raga when the bhog of Chhappanbhog is kept.
Nandadik has all come to Shri Vrishabhan Sadan for food. Whose lotus feet have been covered with pavadas….
After this, the posts of food and congratulations are also sung.
According to another belief, at the time of Shri Vallabhacharya ji and Shri Vitthalnathji, seven forms used to sit in Gokul only. Annakoot Jati used to be in Pura (Girirajji), used to come in seven forms and get cured together. Once Shrinathji said to Shri Gusainji Su Kini, I am hungry, these seven are cured, then you Shri, in a secret form, without showing any other form, the various ingredients of seven forms (or many types of ingredients in Chappan Bhog, You will be cured in Sakhadi and Anasakhadi) You will be cured in Shriji Yadin Shreeji at the bottom of the Nagade Govardhan Pooja Chowk, which means that when Nagar eats at the top, all the arrangements will come to know about it; Shri Gusainji was blessed like this
🌼 According to another popular belief prevalent in Pushtimarg, on this day in Vikram Samvat 1632, Nityalilastha Gauswami Shri Gokulnathji restored the form of Shri Baldev ji according to Veda method after renovation of Shri Baldevji’s temple in Dauji village near Gokul in Vraj. Handa was given to Shri Baldevji. Then Gauswami Shri Gokulnathji thought that it is not logical that the elder brother (Shri Baldevji) should be lavishly entertained and the younger brother (Shriji) should not have anything, so he cured Shriji on Marshish Shukla Purnima and got six enjoyments. Every year Howe made such a rule in the system.
Since then Shreeji Prabhu is adopted every year as Chhappanbhog of the rule, while Shri Baldevji also has grand wishes on this day, plows and pestles are used for gold inlay and fairs are organized in the village.
According to the order of Shri Tilakayat in different seasons in Shreeji, wishes of Chhappanbhog are also made by the devotees. There are some differences between the enjoyment of the house and the enjoyment of the lover –
🌸 The ingredients for Chhappanbhog of Niyam (home) start being proved fifteen days before the festival i.e. from Marshish Shukla Pratipada, but the ingredients for Adki’s Chhappanbhog start being proved seven days before Manorath.
🌸 Chhappanbhog of rules (house) is the real Chhappanbhog because Adki’s Chhappanbhog is not actually Chhappanbhog but a big wish in which different types of ingredients are treated in large quantities.
🌸 Chhappanbhog of Niyam (Ghar) is served in Gopivallabh (Gwal) bhog, so its darshan opens at around 11 am while Adki’s Chhappanbhog is served in Manorath Rajbhog, so its darshan opens at around 1 pm.
🌸 No form other than Shreeji is invited in Chhappanbhog of Niyam (house), while Shri Navneetpriyaji and other Saptanidhi forms can be brought to Adki’s Chhappanbhog Manorath as per the order of Shri Tilakayat and this has happened many times in the past.
🌸 Niyama (home) Chhappanbhog festival is variety-oriented, that is, there are many wonderful ingredients in it, which are cured only on this day in the year, but Adki’s Chhappanbhog Manorath is number-oriented, that means, in it, the ingredients used in common desires are cured in large quantities. goes.
Shreeji’s Sevakram – Today at 4.30 in the morning, there are conch shells in Shreeji. Due to the festival, the doorposts of all the main doors of the Shreeji temple are smeared with turmeric and garlands are tied with Ashapal’s thread. All the time the Jhariji of Yamuna water is filled. In all the four darshans (mangala, rajbhog evening-aarti and shayan) aarti is done in a plate. Whiteness does not come on the mattress, pillow etc. Meghshyam is made of velvet and Gadal quilt is made of yellow khinkhab on the pillow. Ball, Chowgan and Diwala come of gold.
After Mangala darshan, the Lord is given abhyanga (bath) with sandalwood, amla and phulel (perfumed oil).
Today, Shreeji is given a chakdar waga of tamami (golden) zari of Niyam and a three-cornered circle of gold zari and gaukarna of silver zari on top of Tipara on Shrimastak.
Shringar and Gwal’s darshan are not opened.
Shreeji is served specially laddoos (cardamom-jalebi) of Manor (cardamom-jalebi) to Gopivallabh (Gwal), pot of Basondi with saffron prepared in the milk house and sweets of four different types of fruits prepared in the vegetable garden.
Chappanbhog’s sakhri bhog is kept in Nijmandir and half in Manikotha in Gopivallabh Bhog itself. Anasakhadi bhog is prepared in Manikotha, Dol-Tibari and Ratanchowk.
Dhoop, lamp, conch shell are used and Tulsi is dedicated. After the bhog is over, Rajbhog is held, daily service is done and the darshan of Chappanbhog opens around 12 o’clock. Raita of grapes (raisins) is served in Rajbhog and Panchbhaat (Meva-Bhat, Dahi-Bhat, Rai-Bhat, Shrikhand-Bhat and Vadi-Bhat) is served in Sakhdi.
In Rajbhog darshan, 25 beeda sikori adki (gold forged vessel) is kept in front of the Lord.
Today, God alone heals the twenty-sixth enjoyment of the rules, that means Shri Navneetpriyaji or any other form is not invited to Shriji today. To the extent that other forms do not come to know about it, today even drums are played below in the square of Govardhan Puja.
Nuggets (a lump of 56 different types of ingredients) are sent for the bhog of Shri Navneetpriyaji.
In place of the feka which is served at the time of enjoyment, seeds and sieved dry fruits fried in ghee are served.
Chhappanbhog Surrey –
Kirtan – (Raag: Ashavari)
Nandadik has come to Sri Vrishabhanasadan for food. Straws have been spread on the feet of lotus feet ll 1 ll Ramkrishna dou veer birajat gaur shyam dou chanda ho. It doesn’t say that the form of straws should be liked by sages ll 2 ll Sandalwood grass mixed with myrrh has been smeared in the food hall. Various fragrances camphor etc. De Rachna Chowk Puraye Ho ll 3 ll Mandap chayo kamal komal dal sital chhanhu suhai ho. The garlands of flowers around the curtain should be hollowed ll 4 ll Everyone’s feet are washed with cool water and Kumkum. 5 Be Vimal Vesh Ahira with Rajat Raj Gop Bhuvapati. Manhu samaj Rajhansan ko zure sarovar teera ho..6..…..(incomplete)
Rajbhog Darshan –
Kirtan – (Raag: Sarang)
Jayati Rukmani Nath Padmavati Pranpati Vriprakul Chhatra Anandkari. Deep Vallabh Vansh Jagat Nistam Karan, Koti Uduraj Same Tapahari ll 1 ll Jayati devotee husband patit paavan karan kamijana kamna puranchari l Freedom-seeking public devotional God gross strength Gun Ganan Bhari ll 2 ll Jayati Sakal Tirath Falit Naam Smarana Matra Vas Vraj Nitya Gokul Bihari l ‘Nandadas’ni Nath’s father Giridhar Adi manifest incarnation Girirajdhari ll 3 ll
Decoration – Today in Shreeji, over the dark colored velvet, the backs of the cows are put on with silver zari. White bedding is done on the mattress, pillow and footstool and a red colored cloth is placed in front of the idol.
Clothing – Today the Lord is offered golden (Tamami) zari suit, choli, chakdar vaga. Patka and mojaji are made of silver zari and thick clothes of meghshyam color are worn.
Shringar – Today the Lord is decorated with heavy garlands (up to Charanarvind) as a festival. All ornaments of diamond are worn. A diamond keelangi sirpanch, silver zari gaukarna, golden zari trikhuna ghera and sheeshphool are placed on the left side of the head. Makarakriti coils are tied to Shrikarna. The peak of Utsav’s diamond is placed on the left side. The frame of ancient inlay of diamond is placed on the pedestal. All garlands of musk, bud etc. are put on. Two beautiful garlands of white and pink flowers are put on. Diamond’s Venuji and two Vetraji’s are held in Srihasta. The flag of the festival and the gold coin come from the jumping tiger and goat. RC Gwal has four trees and Rajbhog has a golden stick.