ए दिल चल रे बरसाना
जहां पर रहते है कान्हा
बना के दिल का नजराना
लुटा दूंहोकर दीवाना
सखी मै मयूर बन जांऊ
नाच के हरी को रिझाऊं
अपने भावों को मै गाऊं
उसी चौखट पे ठहर जांऊ
रज मै बरसाना की छू पांऊ
छू के खुशकिस्मत हो जाऊं
लाङली Զเधे के दर्शन मै पाऊं
नाम का अमृत चख आऊं
मिलेगी रँगीली सरकार
रंग में रंग देगी वो इस बार
अनुपम है उनका दरबार
मन करे जाऊँ बारम्बार,
छटा है दर की अनुपम सी
जिस पे जाते है सब बलिहार