आपका मन जिन-जिन पदार्थोंका चिन्तन करता है, उनसे कितने दिनोंका सम्बन्ध है, जरा विचारें । इस देहके धारण करनेके समय से ही तो उनका सम्बन्ध हुआ है। अतएव एक सीमित समयके चित्र बार-बार मनमें उलट-पलट करके आते हैं और किसीसे राग होता है, किसीसे द्वेष होता है; किसीको आप अपना मानते हैं, किसीको पराया; किसीसे दुःखी होते हैं, किसीसे प्रसन्न होते हैं – यही भूल है ।
हमलोगोंको इसीको मिटाना है। इन सब स्थानोंसे मनको निकालना है और सबके बदले केवल एक भगवान्का चिन्तन करना है । हमारे चिन्तनका जितना स्थान भगवान् ग्रहण करेंगे, उतना अंश विषयोंसे रहित होगा। जिस दिन केवल भगवान् -ही- भगवान् रहेंगे, उस दिन संसार पूर्णरूपसे निकल जायगा। हमलोग अभ्यास करें, चेष्टा करें मनको निरन्तर भगवदाकार बनानेकी ।
पहले विश्वास करें – ‘ इस जगत् में सुख नहीं है; फिर प्रतीति होनेपर विचारके द्वारा निश्चित करें – यहाँ सुख नहीं है । इस प्रकार निरन्तर – ‘यहाँ इस जगत् में सुख नहीं है, इसकी भावनाको दृढ़ करते हुए भगवान्से मनको जोड़िये । देखिये, भगवान् कोई कल्पनाकी वस्तु नहीं हैं। वे हैं, सत्य हैं, नित्य हैं और आपकी प्रत्येक चेष्टाको देखते हैं ।
यदि सचमुच पूरी ईमानदारीसे अपनी ओरसे मनको लगानेकी चेष्टा करें तो कृपामयकी कृपा शेष कमी पूरा कर देगी। वे केवल नीयत देखते हैं। प्रयासकी तत्परता होनेपर उनकी कृपासे स्वयं संसारसे मन हटेगा और उनकी ओर लगेगा