“गुलाब सखी का चबूतरा”

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“बरसाना”
बरसाने की पीली पोखर से प्रेम सरोवर जाने वाले रास्ते से कुछ हटकर वन प्रांत में एक पुराना चबूतरा है। लोग उसे गुलाब सखी का चबूतरा कहते हैं और आते-जाते उस पर माथा टेकते हैं।
आइये जानते है क्या है इस चबूतरे की कथा।

गुलाब एक निर्धन व्यक्ति का नाम था । बरसाने की पवित्र धरती पर उसका जन्म हुआ । ब्रह्मा आदि जिस रज की कामना करते हैं उसका उसे जन्म से ही स्पर्श हुआ था। पढ़ा लिखा कुछ नहीं था पर सांरगी अच्छी बजा लेता था। श्री राधा रानी के मंदिर के प्रांगण में जब भी पदगान हुआ करता था उसमें वह सांरगी बजाया करता था। यही उसकी अजीविका थी। मंदिर से जो प्रसाद और दान दक्षिणा प्राप्त होती उसी से वो अपना जीवन र्निवाह करता था ।
उसकी एक छोटी लड़की थी । जब गुलाब मंदिर में सारंगी बजाता तो लड़की नृत्य करती थी । उस लड़की के नृत्य में एक आकर्षण था, एक प्रकार का खिंचाव था।उसका नृत्य देखने के लिए लोग स्तंभ की भांति खड़े हो जाते। गुलाब अपनी बेटी से वह बहुत प्यार करता था, उसने बड़े प्रेम से उसका नाम रखा राधा।


वह दिन आते देर न लगी जब लोग उससे कहने लगे, “गुलाब लड़की बड़ी हो गई है। अब उसका विवाह कर दे।”


राधा केवल गुलाब की बेटी न थी वह पूरे बरसाने की बेटी थी। सभी उससे प्यार करते और उसके प्रति भरपूर स्नेह रखते। जब भी कोई गुलाब से उसकी शादी करवाने को कहता उसका एक ही उत्तर होता,” शादी करूं कैसे? शादी के लिए तो पैसे चाहिए न? “


एक दिन श्री जी के मंदिर के कुछ गोस्वामियों ने कहा, ” गुलाब तू पैसों की क्यों चिन्ता करता है? उसकी व्यवस्था श्री जी करेंगी। तू लड़का तो देख? “


जल्दी ही अच्छा लड़का मिल गया। श्री जी ने कृपा करी पूरे बरसाने ने गुलाब को उसकी बेटी के विवाह में सहायता करी, धन की कोई कमी न रही, गुलाब का भण्डार भर गया, राधा का विवाह बहुत धूम-धाम से हुआ। राधा प्रसन्नता पूर्वक अपनी ससुराल विदा हो गई।


क्योंकि गुलाब अपनी बेटी से बहुत प्रेम करता था और उसके जीवन का वह एक मात्र सहारा थी, अतः राधा की विदाई से उसका जीवन पूरी तरहा से सूना हो गया। राधा के विदा होते ही गुलाब गुमसुम सा हो गया। तीन दिन और तीन रात तक श्री जी के मंदिर में सिंहद्वार पर गुमसुम बैठा रहा। लोगो ने उसको समझने का बहुत प्रयास किया किन्तु वह सुध-बुध खोय ऐसे ही बैठा रहा, न कुछ खाता था, ना पीता था बस हर पल राधा-राधा ही रटता रहता था।

चौथे दिन जब वह श्री जी के मंदिर में सिंहद्वार पर गुमसुम बैठा था तो सहसा उसके कानों में एक आवाज आई, ” बाबा ! बाबा ! मैं आ गई। सारंगी नहीं बजाओगे मैं नाचूंगी।”


उस समय वह सो रहा था या जाग रहा था कहना कठिन था। मुंदी हुई आंखों से वह सांरगी बजाने लगा और राधा नाचने लगी मगर आज उसकी पायलों में मन प्राणों को हर लेने वाला आकर्षण था। इस झंकार ने उसकी अन्तरात्मा तक को झकझोर दिया था। उसके तन और मन की आंखे खुल गई। उसने देखा उसकी बेटी राधा नहीं बल्कि स्वयं राधारानी हैं, जो नृत्य कर रही हैं।


सजल और विस्फरित नेत्रों से बोला, बेटी! बेटी! और जैसे ही कुछ कहने की चेष्टा करते हुए स्नेह से कांपते और डगमगाते हुए वह उनकी अग्रसर ओर हुआ राधा रानी मंदिर की और भागीं। गुलाब उनके पीछे-पीछे भागा ।
इस घटना के पश्चात गुलाब को कभी किसी ने नहीं देखा। उसके अदृश्य होने की बात एक पहेली बन कर रह गई। कई दिनों तक जब गुलाब का कोई पता नहीं चला तो सभी ने उसको मृत मान लिया। सभी लोग बहुत दुखी थे, गोसाइयों ने उसकी स्मृति में एक चबूतरे का निर्माण करवाया।
कुछ दिनों के पश्चात मंदिर के गोस्वामी जी शयन आरती कर अपने घर लौट रहे थे। तभी झुरमुट से आवाज आई,” गोसाई जी! गोसाई जी! “
गोसाई जी ने पूछा, ” कौन?”
गुलाब झुरमुट से निकलते हुए बोला, ” मैं आपका गुलाब। “
गोसाई जी बोले, “तू तो मर गया था। “
गुलाब बोला, ” मुझे श्री जी ने अपने परिकर में ले लिया है। अभी राधा रानी को सांरगी सुना कर आ रहा हूं। देखिए राधा रानी ने प्रसाद के रूप में मुझे पान की बीड़ी दी है। गोस्वामी जी उसके हाथ में पान की बीड़ी देखकर चकित रह गए क्योंकि यह बीड़ी वही थी जो वह राधा रानी के लिए अभी-अभी भोग में रखकर आ रहे थे। “
गोसाई जी ने पूछा,”तो तू अब रहता कहां है?”
उसने उस चबूतरे की तरफ इशारा किया जो वहां के गोसाइयों ने उसकी स्मृति में बनवाया था।
तभी से वह चबूतरा “गुलाब सखी का चबूतरा” के नाम से प्रसिद्द हो गया और लोगो की श्रद्धा का केंद्र बन गया।

राधा राधा रटते ही भव बाधा मिट जाए …कोटि जन्म की आपदा श्री राधे नाम से जाए
बोलिये वृन्दावन बिहारी लाल की जय ।
जय जय श्री राधे।
श्री राधाकृष्ण शरणम ममः



“Rain” There is an old platform in the forest province, a little further away from the road leading to Prem Sarovar from the yellow puddle of rain. People call it Gulab Sakhi ka Chabutra and bow their heads on it while coming and going. Let us know what is the story of this platform.

Gulab was the name of a poor man. He was born on the holy land of Barsana. The secret that Brahma etc. aspires for was touched by him since his birth. There was nothing educated but he used to play the sarangi well. He used to play the sarangi in the courtyard of Shri Radha Rani’s temple whenever there was a hymn. This was his livelihood. He used to live his life with the prasad and donation received from the temple. He had a little girl. When Gulab played the sarangi in the temple, the girl used to dance. There was a charm, a kind of vibe in that girl’s dance. People would stand like pillars to watch her dance. He loved his daughter Gulab very much, he named her Radha with great affection.

The day did not take long when people started saying to him, “The rose girl has grown up. Now marry her.”

Radha was not only the daughter of Gulab, she was the daughter of the whole rain. Everyone loved him and had a lot of affection towards him. Whenever someone asked Gulab to get him married, he would have only one answer, “How to get married? Money is needed for marriage, isn’t it?”

One day some Goswamis of Shriji’s temple said, “Gulab why are you worried about money? Shriji will arrange for that. You look at the boy?”

Soon a good boy was found. Shri ji showered his blessings and helped Gulab in his daughter’s marriage, there was no shortage of money, the store of roses was filled, Radha got married with great pomp. Radha happily left for her in-laws house.

Because Gulab loved his daughter very much and she was the only support in his life, so Radha’s departure left his life completely empty. As soon as Radha left, the rose became lonely. For three days and three nights, he sat in silence at the Singhdwar in Shriji’s temple. People tried a lot to understand him, but he kept sitting like this, lost his mind, neither ate nor drank, just kept on chanting Radha-Radha every moment.

On the fourth day, when he was sitting on the Singhadwar in Shriji’s temple, suddenly a voice came to his ears, “Baba! Baba! I have come. You will not play the sarangi, I will dance.”

It was difficult to say whether he was sleeping or awake at that time. With closed eyes, he started playing the sarangi and Radha started dancing, but today her anklets had a life-threatening attraction. This jingle shook even his soul. The eyes of his body and mind opened. He saw that it was not his daughter Radha but Radharani herself, who was dancing.

Sajal and spoke with wide eyes, daughter! Daughter And as soon as he tried to say something, trembling and staggering with affection, Radha Rani ran towards the temple. Rose ran after them. No one ever saw Gulab after this incident. The matter of his disappearance remained a puzzle. When Gulab was not found for several days, everyone assumed him to be dead. Everyone was very sad, the Gosais got a platform built in his memory. After a few days, Goswami ji of the temple was returning home after performing Shayan Aarti. Then a voice came from the clump, “Gosai ji! Gosai ji!” Gosai ji asked, “Who?” The rose came out of the clump and said, “I am your rose.” Gosai ji said, “You were dead.” Gulab said, “Shri ji has taken me in his family. Now I am coming after listening to Radha Rani’s sarangi. See, Radha Rani has given me betel bidi as Prasad. He was surprised because this beedi was the same which he had just brought as an offering to Radha Rani. Gosai ji asked, “So where do you live now?” He pointed to the platform that the Gosais there had built in his memory. Since then that Chabutra became famous by the name of “Gulab Sakhi Ka Chabutra” and became the center of reverence of the people.

May the obstacle be removed as soon as Radha Radha chants… the disaster of crores of births goes away in the name of Shri Radhe Say hail Vrindavan Bihari Lal. Hail Hail Lord Radhe. Shree Radhakrishna Sharanam Mamah

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