प्रहलाद ने भगवान से माँगा:- “हे प्रभु मैं यह माँगता हूँ कि मेरी माँगने की इच्छा ही ख़त्म हो जाए।”
कुंती ने भगवान से माँगा:- “हे प्रभु मुझे बार बार विपत्ति दो ताकि आपका स्मरण होता रहे।”
महाराज पृथु ने भगवान से माँगा:- “हे प्रभु मुझे दस हज़ार कान दीजिये ताकि में आपकी पावन लीला गुणानुवाद का अधिक से अधिक रसास्वादन कर सकूँ।”
और श्रीहनुमान जी तो बड़ा ही सुंदर कहते हैं:-
“अब प्रभु कृपा करो एही भाँती।
सब तजि भजन करौं दिन राती॥”
बचा मैं!
तो मैं आपसे क्या मांगू प्रभु…
बस, इतना करना है मेरे स्वामी !
मेरी इच्छा कभी पूर्ण न हो…
सदैव आपकी ही इच्छा पूर्ण हो…
क्योंकि मेरे लिए क्या सही है…
ये मुझसे बेहतर आप जानते हैं ।
हे नाथ ! मेरे मन, कर्म और वचन से.. कभी किसी को भी थोड़ा सा भी दुःख न पहुँचे….यह कृपा बनाये रखें
हे नाथ ! मैं कभी न पाप करूँ…न होता देखूं.. न सुनू…और न ही कभी किसी के पाप का बखान करूँ ।
हे नाथ ! शरीर के सभी इन्द्रियों से आठो पहर… केवल आपके प्रेम भरी लीला का ही आस्वादन करता रहूँ ।
हे नाथ ! प्रतिकूल से प्रतिकूल परिस्थिति में भी… आपके मंगलमय विधान देख सदैव प्रसन्न रहूँ ।
हे नाथ ! अपने ऊपर महान से महान विपत्ति आने पर भी… दूसरों को सदैव सुख ही दिया करूँ ।
हे प्रभु ! अगर कभी किसी कारणवश… मेरे वजह से किसी को दुःख पहुँचे… तो उसी समय उससे हाथ जोड़कर क्षमा माँग लूँ ।
हे प्रभु ! आठो पहर रोम रोम से… केवल आपके नाम का ही जप होता रहे ।
हे प्रभु ! मेरे आचरण श्रीमद्भगवद्गीता और श्रीरामचरितमानस के अनुकूल हों ।
हे मेरे प्रभु ! हर एक परिस्थिति में मुझे आपके ही दर्शन हों.. !
और
अंत में जब मेरे तन से प्राण निकलें, तो आपका दरबार हो आप मेरे सामने हो मेरे मुख पे आपका नाम हो प्रभु…!
बस इतनी कृपा करना मेरे ऊपर मेरे नारायण।
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय