तुलसी दास जी वृन्दावन आये

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एक बार तुलसी दास जी वृन्दावन आये वहॉ पर वह नित्य ही कृष्ण स्वरूप श्री नाथ जी के दर्शन को जाते थे उस मंदिर में एक महंत थे जिनका नाम परशुराम था
एक दिन जब नित्य कि तरह तुलसी बाबा दर्शन करने पहुँचे तो उनहोंने देखा कि

बंशी लकुट काछनी काछे |
मुकुट माथ माला उर आछे ||

प्रभु के एक हाथ में बंशी है और एक हाथ में लकुटि है प्रभु ने धोती काछ रखी है माथे पर सुन्दर मुकुट है और गले में माला है

तुलसी बाबा दर्शन कर ही रह थे कि महंत बोले

अपने अपने इष्टके, नमन करै सब कोय |
परशुराम बिन इष्टके, नवै सो मूरख होय ||

महंत जी बोले कि हर कोई अपने इष्ट को वंदन करता है और आप के इष्ट तो राम हैं ये तो मेरे इष्ट हैं और जो दूसरे के इष्ट को नमन करता है वो मूरख कहलाता है

इतना सुनते ही पहले तो बाबा हँसे फिर मन में सीताराम को याद करक बोले

कहा कहो छबि आजुकी, भले बने हो नाथ |
तुलसी मस्तक तब नवै, धरौ धनुष शर हाथ ||

बाबा बोले प्रभु आज कि छबि का क्या वर्णन क्या जाए प्रभु कि आप कितने सुन्दर हो लेकिन अब ये तुलसी मस्तक जब झुकेगा जब आप धनुश बाण हाथ मे लोगे

अब बात ये आती है कि ऐसा हुआ कैसे और अब क्यों नही होता तो इसका सीधा सा प्रमाण रामचरित मानस में देखने को मिलता है जब प्रभु श्री राम कहते है

अब जैसे ही इतना बोला तो क्या हुआ कि

मुरली लकुट दुरायके, धरयो धनुष शर हाथ |
तुलसी लखि रूचि दासकी, नाथ भये रघुनाथ ||

जैसे हि तुलसी दास ने कहा तो प्रभु कि मुरली लकुटी गायब हो गयी जो श्री नाथ कि प्रतिमा थी वो श्री राम की प्रतिमा हो गयी और हाथ में धनुश बाण आ गये

चारो तरफ तुलसीदास जी की जय जय कार होने लगी तुलसी बाबा ने प्रसन्न मन से प्रभु को शीश नवाया

निर्मल मन जन सो मोहि पावा ।
मोहि कपट छल छिद्र न भावा ||

कि मुझे कपट,छल,निन्दयी नहीं बल्कि निर्मल और शुद्ध ह्रदय वाले लोग भाते है
इसलिये निर्मल ह्रदय से प्रभु को भजिये और सबको प्यार करिये किसी से द्वेश मत रखिये क्योंकि

रामहि केवल प्रेम पियारा |
जान लेहु जेहि जान निहारा ||

जय श्री राम



Once Tulsi Das ji came to Vrindavan, but he used to regularly visit Shri Nath ji as Krishna, there was a Mahant in that temple whose name was Parashuram. One day when Tulsi Baba came to visit as usual, he saw that

Banshee Lakut Kachni Kachhe | Mukut Math Mala Ur Aache ||

Lord has Banshi in one hand and Lakuti in one hand.

Tulsi Baba was just having darshan that the Mahant said

Be respectful to your loved ones, everyone Parshuram bin Ishtke, Navai so foolish hoy||

Mahant ji said that everyone worships his Ishta and your favorite is Ram, he is my Ishta and the one who bows down to the other’s Ishta is called a fool.

On hearing this, at first Baba laughed and then remembered Sitaram in his mind and said.

Where do you say Chhabi Aazuki, even if you have become Nath. Tulsi head then Navai, Dharau Dhanush Shar Haath ||

Baba said, Lord, what should be the description of today’s image, Lord how beautiful you are, but now when this Tulsi head will bow when you will hold the bow arrow in your hand

Now the thing comes that how this happened and why it does not happen now, then the direct evidence of this is seen in Ramcharit Manas when Lord Shri Ram says

Now what happened as soon as I said so much?

Murli Lakut Durayake, Dharyo Dhanush Shar Haath | Tulsi Lakhi Ruchi Dasaki, Nath Bhaye Raghunath ||

As said by Tulsi Das, Lord’s Murli Lakuti disappeared, which was the statue of Shri Nath, it became the statue of Shri Ram and the bow and arrow came in his hand.

Tulsidas ji’s jai jai car started everywhere, Tulsi Baba bowed his head to the Lord with a happy heart.

Nirmal man jan so mohi pava. Mohi kapat chal chhidra na bhava ||

That I do not like deceit, deceit, unkind, but people with a pure and pure heart. Therefore, with a pure heart, worship the Lord and love everyone, do not have hatred for anyone because

Ramahi keval prem piyara | Jaan Lehu Jehi Jaan Nihara ||

Long live Rama

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