क्षणिक सुख सत्य नहीं
हमे अंग संग खङे प्रभु भगवान श्री हरि की खोज करनी है। उस ज्योति में समाना है जो हमारे भीतर
हमे अंग संग खङे प्रभु भगवान श्री हरि की खोज करनी है। उस ज्योति में समाना है जो हमारे भीतर
मैं तो हूं ही नहीं मेरा कोई नाम भी नहीं है। न ही मेरी पहचान है। मै जो दिखाई देता
भगवान की छवि हमारी आत्मा का हमारी भक्ति और साधना का प्रतिबिंब है।हमारी जितनी आत्मा की पुकार होगी उतने ही
समय और लगन दो ऐसे गुरु है जो भी समय और लगन को मुट्ठी में बांध कर चलता है। लक्ष्य
एक दीपक प्रज्वलित करके भगवान् को अन्तर मन से धन्यवाद करे कि हे भगवान् तुमने मुझे बना कर पृथ्वी पर
. बाह्य पूजा को कई गुना अधिक फलदायी बनाने के लिए शास्त्रों में एक उपाय बतलाया गया है, वह
नरसी महेता का जन्म सौराष्ट्र के तलाजा नामक गांव के वडनगरा नागर घराने में हुआ था। लेकिन बाद में वह
दोनों आंखों को बंद कर लेने से हमारी अस्सी प्रतिशत ऊर्जा क्षीण होने से रुक जाती है,आंखों को धीरे से
आप घर का वातावरण ऐसा बनाइएं, जिसमें सफाई का वातावरण, मितव्ययता का वातावरण, शिष्टाचार का वातावरण,शालीनता का वातावरण भी सम्मिलित
परमात्मा ह्दय के भाव और प्रेम में छुपा हुआ है। आज हम पुजा भी करते हैं तो दिखा कर करते