
प्रभु संकीर्तन
मन कहता है, मुझे पूजा पाठ विधि से नही आता,पुस्तको में क्या लिखा है मुझे समझ नही आता,किन्तु मेरा मन
मन कहता है, मुझे पूजा पाठ विधि से नही आता,पुस्तको में क्या लिखा है मुझे समझ नही आता,किन्तु मेरा मन
बाल्मीकि रामायण और तुलसीकृत रामायण में इस कथा का वर्णन नहीं है, पर तमिल भाषा में लिखी *महर्षि कम्बन की
कुछ समय हमें ठहरना आ जाए। जब हम ठहरने का अभ्यास करेंगे तब वह दिन दूर नहीं हमे भगवान से
प्रमात्मा तो!कल्पना ओर समय से,भी, परे का विषय है!! क्योकि!इस पूरी स्वप्न रूपी सुष्टि का,मालिक,स्वयंम प्रकाशित,अनन्त, अखंड ओर अजन्मा है!!
आज की पीढ़ी मानव जीवन के मुल्य को भुल गई है। वह शारीरिक जीवन को असली जीवन समझ बैठी है।
एक भक्त की जन्म से ही मन में ये इच्छा बन जाती है भगवान की पूजा आरती करनी है भगवान
. नामदेव महाराष्ट्र के महान् सन्त थे। परन्तु इनके मन में सूक्ष्म अभिमान घर कर गया था कि भगवान्
भोला अपनी बहन के साथ गांव में मिट्टी के मटके बनाने का काम करता था ।भोला 12 साल का था
भक्त भगवान को भजते हुए नाम जप कीर्तन करते हुए देखता है कि भाव की गहराई नहीं बन रही है
संतो की कृपा जिस पर हो जाए उसे फिर क्या नहीं मिल सकता,.अकबर जैसे बादशाह पर कृपा हुई तो उसे