अन्तर्मन का भाव ही पुजा
जय श्री राम जी अन्तर्मन का भाव ही पुजा है। हृदय में उठते भाव को शब्द नहीं हुआ करते हैं।
जय श्री राम जी अन्तर्मन का भाव ही पुजा है। हृदय में उठते भाव को शब्द नहीं हुआ करते हैं।
भगवान से मिलन के लिए लगन समर्पित भाव प्रेम और सत्यता हैं। कोई भी कार्य करे जब तक मन लगाकर
हे भगवान नाथ आज मैं तुम्हें कैसे नमन और वन्दन करू। आज ये दिल ठहर ठहर कर भर आता है।
कई बार मन को समझाती हूं। नैन बन्द करके बैठ जाती हूं। और सोचती हूँ देख अब तेरी शरीर की
निर्गुण निराकार भगवान् भक्त की भक्ति से रिझ कर शरीर धारण करते हैं। भक्त भगवान् नाथ मे इतना डुब जाता
जहाँ प्रेम है वहां प्रभु प्रेम की खोज प्रारम्भ होती है। वह किरया कर्म में परमात्मा को खोजता है। हे
भगवान को याद करते हुए यह भाव दिल में बनते हैं। कि आज मेरे स्वामी भगवान् नाथ देखो मुस्करा रहे
भगवान ने गोपी प्रेम के माध्यम से मानव जाति को प्रेम का सन्देश कितने मनोभाव से प्रकट किया है और
भगवान की चरण स्पर्श का भाव प्रकट करती हूँभक्त के अन्दर भगवान की चरण वन्दन का भाव कुट कुट कर
परमात्मा के नाम में अद्भुत शान्ति और आन्नद समाया हुआ है। भगवान का नाम जो जीव्हा पर रखते हैं। भगवान