
भगवान देख रहा 1
हे परमात्मा जी मै कहती। भगवान् देख रहा है। मै जब भी घर में कार्य करती मेरा अन्तर्मन पुकारता भगवान्
हे परमात्मा जी मै कहती। भगवान् देख रहा है। मै जब भी घर में कार्य करती मेरा अन्तर्मन पुकारता भगवान्
भगवान् देख रहा का भाव साधक के मन में तभी जागृत होगा जब अन्तर्मन में शुद्धता समा जाएंगी ।मेराभगवान् सगुण
अध्यात्मवाद पढने और लिखने की चीज नहीं है। तोते की तरह ग्रंथ और ज्ञान को रटने की चीज नहीं है।
हमे अंग संग खङे प्रभु भगवान श्री हरि की खोज करनी है। उस ज्योति में समाना है जो हमारे भीतर
शान्ति सबसे बड़ा धन है। हम जीवन भर भटकते रहते हैं। हमे शान्ति नहीं मिलती है। आज हम इस विकट
परमात्मा को रात दिन सुबह शाम चलते हुए बैठे हुए खाते हुए, जल पीते हुए, सोऐ हुए, बाजारों में घुमते
हे परम पिता परमात्मा तुम्हें किस विधि नमन करू मेरे स्वामी हे भगवान नाथ आज दिल में तङफ पैदा हो
मैं तो हूं ही नहीं मेरा कोई नाम भी नहीं है। न ही मेरी पहचान है। मै जो दिखाई देता
गोपियों का दिन रात हर क्षण प्रभु के साथ मिलन है। रोम रोम से कृष्ण नाम की ध्वनि गुंज रही
भगवान की छवि हमारी आत्मा का हमारी भक्ति और साधना का प्रतिबिंब है।हमारी जितनी आत्मा की पुकार होगी उतने ही