
नाचे कृष्ण मुरारी, आनंद रस बरसे रे
नाचे कृष्ण मुरारी, आनंद रस बरसे रे | नाचे दुनिया सारी, आनंद रस बरसे रे || नटखट नटखट हैं नंदनागर,
नाचे कृष्ण मुरारी, आनंद रस बरसे रे | नाचे दुनिया सारी, आनंद रस बरसे रे || नटखट नटखट हैं नंदनागर,
तुम मुझे देखा करो और मैं तुम्हें देखा करूँ हमारा मन वहीं लगता है, जहाँ हमारी अभिलाषित वस्तु होती है,
सुखों का सागर, कलप वृक्ष, चिंतामणी, कामधेन गाय जिसके वश में हैं। चार पदारथ अठारह सिद्धियाँ नौ निधियाँ जिसकी हाथ
आते हो तुम बार-बार प्रभु ! मेरे मन-मन्दिरके द्वार।कहते—‘खोलो द्वार, मुझे तुम ले लो अंदर करके प्यार’॥मैं चुप रह जाता,
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है गृहस्थ जीवन में भी भक्त मेरी भक्ति कर सकता है। गृहस्थ में रहते हुए माता,
प्रेम की अगन हो,भक्ति सघन हो,मन में लगन हो तो,प्रभु मिल जाएंगे ॥हृदय में भाव हो,अनुनय की छांव हो॥आराधन का
बैठे नजदीक तू सँवारे के तार से तार जुगने लगेगा,देख नजरो से नजरे मिला के तुमसे बाते ये करने लगेगा,बैठे
उड़ीसा में बैंगन बेचनेवाले की एक बालिका थी | दुनिया की दृष्टि से उसमें कोई अच्छाई नहीं थी | न
रामायण में वर्णित चूडामणि की कहानी बता रहे है। इस कहानी में आप जानेंगे की- १–कहाँ से आई चूडा मणि
जो शान्त भाव से उपासना करते हैं, उनके लिये केवल श्रीकृष्ण का ऐश्वर्यमय रूप प्रकाशित होकर रह जाता है। उन्हें