भगवान (Bhagvan)

*रुद्राष्टकम्*

नमामीशमीशान निर्वाणरूपंविभुं व्यापकं ब्रह्म वेदस्वरूपं।निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहंचिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहं।।१।। अर्थ-हे मोक्षस्वरूप, विभु, व्यापक, ब्रह्म और वेदस्वरूप, ईशान दिशा के ईश्वर

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मीरा चरित भाग- 32

‘हाँ, मीरा-जयमल मेरे पास आओ बेटा! मैं जयमल को योद्धा वेष में और मीरा को अपनी राजसी पोशाक में देखना

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मीरा चरित
भाग- 31

मैं कैसे अब दूसरा पति वर लूँ? और कुछ न सही, शरणागत समझकर ही रक्षा करो…. रक्षा करो! अरे, ऐसा

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हनुमत वंदन

अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहम्‌दनुजवनकृषानुम् ज्ञानिनांग्रगणयम्‌।सकलगुणनिधानं वानराणामधीशम्‌रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि।। मनोजवं मारुततुल्यवेगमजितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं।वातात्मजं वानरयूथमुख्यंश्रीरामदूतं शरणम् प्रपद्ये।। श्रीरामभक्त हनुमानजी साक्षात एवं जाग्रत देव हैं।

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मीरा चरित भाग 30

‘हाँ हजूर ।’दासी ने आकर बताया कि स्नानकी सामग्री प्रस्तुत है। ‘मैं जाऊँ स्नान करने?’—उन्होंने अपनी दोनों बेटियों से पूछा।‘पधारो।’-

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मीरा चरित भाग-29

मीरा ने एक बार और लौट जाना चाहा, किन्तु फूलाँ की जिद्द से विवश होकर वह साथ हो ली। यों

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मीरा चरित भाग- 28

‘बस, इतनी-सी बात? लो पधारो। मैं चलती हूँ भोजन करनेके लिये। आपके मुख से भोजन का नाम सुनते ही जोर

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मीरा चरित भाग- 27

अपनी दशा को छिपाने के प्रयत्न में उसने सखियों की ओर से पीठ फेरकर भीत पर दोनों हाथों और सिर

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