[51]”श्रीचैतन्य–चरितावली”
।। श्रीहरि:।। [भज] निताई-गौर राधेश्याम [जप] हरेकृष्ण हरेरामअद्वैताचार्य को श्यामसुन्दररूप के दर्शन ददाति प्रतिगृह्णाति गुह्यमाख्याति पृच्छति।भुड्क्ते भोजयते चैव षड्विधं प्रीतिलक्षणम्।।
।। श्रीहरि:।। [भज] निताई-गौर राधेश्याम [जप] हरेकृष्ण हरेरामअद्वैताचार्य को श्यामसुन्दररूप के दर्शन ददाति प्रतिगृह्णाति गुह्यमाख्याति पृच्छति।भुड्क्ते भोजयते चैव षड्विधं प्रीतिलक्षणम्।।
।। श्रीहरि:।। [भज] निताई-गौर राधेश्याम [जप] हरेकृष्ण हरेरामप्रच्छन्न भक्त पुण्डरीक विद्यानिधि तदश्मसारं हृदयं बतेदंयद् गृह्यमाणैर्हरिनामधेयैः।न विक्रियेताथ यदा विकारोनेत्रे जलं गात्ररुहेषु
।। श्रीहरि:।। [भज] निताई-गौर राधेश्याम [जप] हरेकृष्ण हरेरामनिमाई और निताई की प्रेम-लीला अवतीर्णों सकारुण्यौ परिच्छिन्नौ सदीश्वरौ।श्रीकृष्णचैतन्यनित्यानन्दौ द्वौ भ्रातरौ भजे।। आनन्द
।। श्रीहरि:।। [भज] निताई-गौर राधेश्याम [जप] हरेकृष्ण हरेरामभक्त हरिदास अहो बत श्वपचोऽतो गरीयान्यज्जिह्वाग्रे वर्तते नाम तुभ्यम्।तेपुस्तपस्ते जुहुवुः सस्नुरार्याब्रह्मानूचुर्नाम गृणन्ति ये
।। श्रीहरि:।। [भज] निताई-गौर राधेश्याम [जप] हरेकृष्ण हरेरामद्विविध-भाव भगवद्भावेन यः शश्वद्भक्तभावेन चैव तत्।भक्तानानन्दयते नित्यं तं चैतन्यं नमाम्यहम्।। प्रत्येक प्राणी की
।। श्रीहरि:।। [भज] निताई-गौर राधेश्याम [जप] हरेकृष्ण हरेरामव्यासपूजा ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्।मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः।। प्रेम का
।। श्रीहरि:।। [भज] निताई-गौर राधेश्याम [जप] हरेकृष्ण हरेरामअद्वैताचार्य के ऊपर कृपा सखि साहजिकं प्रेम दूरादपि विराजते। चकोरीनयनद्वनद्वमानन्दयति चन्द्रमाः।। यदि प्रेम
श्रीवामनपुराण के माध्यम से अध्यात्मिक प्रसंगमहिषासुर वंश कथा भाग – 1 ऋषी पुलस्त्यजी से नारदजी ने पूछा —-ऋषे ! द्विजोतम
।। श्रीहरि:।। [भज] निताई-गौर राधेश्याम [जप] हरेकृष्ण हरेरामस्नेहाकर्षण दर्शने स्पर्शने वापि श्रवणे भाषणेऽपि वा।यत्र द्रवत्यन्तरंगं स स्नेह इति कथ्यते।। सचमुच
गृहस्थ जीवन का सबसे बड़ा दुर्भाग्य- अंतहि तोहिं तजेंगे पामर, तूँ न तजे अबहीं ते गृहस्थ जीवन में रहते हुए