
शुक्र मनाऊ तेरा शुक्र मनाऊ मैं
रेहमतो को तेरी गुरु जी कैसे भूल जाऊ मैं, शुक्र मनाऊ तेरा शुक्र मनाऊ मैं, उपकार तेरे गुरु जी गिन

रेहमतो को तेरी गुरु जी कैसे भूल जाऊ मैं, शुक्र मनाऊ तेरा शुक्र मनाऊ मैं, उपकार तेरे गुरु जी गिन

जी मैं सुपना सुनावा कल रात दा, गुरां दे नाल गल्लां कीतियाँ, सतिगुरु आये मेरे वेहड़े, चानन होया चार चुफेरे,

देना है तो दीजिए जनम जनम का साथ । मेरे सर पर रखदो सतगुरु अपने दोनों यह हाथ ॥ इसी

आए हैं शरण तेरी, गुरुदेव कृपा कर दो। इस दीन दुखी मन में आनंद सुधा भर दो॥ दुनिया से हार

ख्याल कदो वीर दा रोटी तवीं ते पा के , चौहदी आ के वीर बैठ जे मुड़े निकडा पीड़ी ते

नाम बिन भाव करन नहिं छूटै। साध-संग और राम-भजन बिनु, काल निरन्तर लूटै॥ मलसेती जो मलको धोवै, सो मल कैसे

तुम शर्णायि आया ठाकुर, अनबोलत मेरी विरथा जानी आपना नाम जपाया तुम शर्णायि आया ठाकुर दुःख नाठे सुख सेहज समाये

कांशी विच आया अवतार कोई संगते, फूल बरसौंदे सारे खुशिया मनाउंदे, सारे करदे ने जय जय कार, कांशी विच आया

तेरा वसदा रहे दरबार डुगरी वालेया साडा सुखी रहे परिवार डुगरी वालेया दुरो दुरो दर तेरे आउंदे ने सवाली, आये

साहिब मेरा रंगला रंगदा पके रंग हो मन रंगे अपना साहिब रहंदा संग साहिब मेरा रंगला…. नाम जपो वडभागेयो कल