सूर्य देव चालीसा
॥दोहा॥ कनक बदन कुण्डल मकर, मुक्ता माला अङ्ग, पद्मासन स्थित ध्याइए, शंख चक्र के सङ्ग॥ जय सविता जय जयति दिवाकर,
॥दोहा॥ कनक बदन कुण्डल मकर, मुक्ता माला अङ्ग, पद्मासन स्थित ध्याइए, शंख चक्र के सङ्ग॥ जय सविता जय जयति दिवाकर,
आज के युग में मानवता इंसान छोड़ कर दूर हुए, इसी किये मंदिर मस्जिद भगवान छोड़ कर दूर हुए, कर्म
एक डाल दो पंछी बैठा,कौन गुरु कौन चेला, गुरु की करनी गुरु भरेगा,चेला की करनी चेला रे साधुभाई, उड़ जा
सत्संग कीर्तन करले जिन्दे मेरे जे भव सागर पार लंगना, कई तर गे गुरा ने कई तारे जिह्ना ओह हरी
संतन के संग लाग रे, संतन के संग लाग रे, तेरी भली बनेगी संतन के संग हंसन की गति हंस
रूखी मिले चाहे रोटी मुझे कोई गम नहीं, रखना सुखी परिवार मेरा विनती है बस यही, सिर पर हो न
हे प्रभु राह दिखाओ अब तो मंझधार में नईया डूब रही पतवार बनो भव पार करो हमें राह ना कोई
तेरी नेकी बदी ना प्रभु से छुपी सब देख रहा है भगवान मत भूल अरे इंसान तू है दो दिन
देवा, बाबोसा चूरू वाले, भक्तो के है रखवाले, रिम झिम उतारे तेरी आरती, बाबोसा, रिम झिम उतारे तेरी आरती सिर
माँ की ममता माँ से मांगे, मुझे पुत्र मिले,श्रवण की तरह, और भाभी मांगे देवर, लक्ष्मण की तरह, गुरु बिन