
ओ जी ओ पाबूजी थोरी
ओ जी ओ पाबूजी थोरी केसर घूघरिया या गमक्कावे ओ पाबूजी, आ तो भगतों रे हित कारणे , पाबूजी भुरजाला

ओ जी ओ पाबूजी थोरी केसर घूघरिया या गमक्कावे ओ पाबूजी, आ तो भगतों रे हित कारणे , पाबूजी भुरजाला

चार दिनों की प्रीत जगत में चार दिनों के नाते है, पलकों के पर्दे पड़ते ही सब नाते मिट जाते

ऐ जीवन दाता सुन हम शरण पड़े तेरे तुम जग के मात पिता हो हम बालक है तेरे ऐ जीवन

तुम्ही हो माता पिता तुम्ही हो। तुम्ही हो बंधू सखा तुम्ही हो॥ तुम्ही हो साथी तुम्ही सहारे, कोई ना अपने

कितना है पावन ये तीर्थ प्रयाग, जिसकी महिमा भाखानि न जाए, महा कुंभ लगे बारहा बरस में. पाप मिटा के

तुमने ही कान्हा सिखा दियापीड़ा में भी मुस्काना।हर दर्द में सुख की अनुभूतिअपने आप से हारते जाना। पलकों में पिय

स्याम! मने चाकर राखो जी गिरधारी लाला! चाकर राखो जी। चाकर रहसूं बाग लगासूं नित उठ दरसण पासूं। ब्रिंदाबन की

॥दोहा॥ कनक बदन कुण्डल मकर, मुक्ता माला अङ्ग, पद्मासन स्थित ध्याइए, शंख चक्र के सङ्ग॥ जय सविता जय जयति दिवाकर,

आज के युग में मानवता इंसान छोड़ कर दूर हुए, इसी किये मंदिर मस्जिद भगवान छोड़ कर दूर हुए, कर्म

एक डाल दो पंछी बैठा,कौन गुरु कौन चेला, गुरु की करनी गुरु भरेगा,चेला की करनी चेला रे साधुभाई, उड़ जा