
नदिया ना पिए कभी अपना जल
नदिया ना पिए कभी अपना जल, वृक्ष ना खाए कभी अपने फल । अपने तन का मन का धन का

नदिया ना पिए कभी अपना जल, वृक्ष ना खाए कभी अपने फल । अपने तन का मन का धन का

सजी रहे राहे उनकी फूलो से सदा कभी कोई गम उन्हें पाए न सता, बुरा चाहे हो वो चाहे भला

आज रविवार है सुरये देव का वार है, इन से जग उजयार है, नव ग्रहो में शक्तिशाली महिमा अप्रम पार

चोंक चोराहो पर मौत खड़ी है श्मशानो में देखो भीड़ भरी है कोई न अपना तेरा अगन लगाये तू क्यों

जिंदल कुल की महारानी लजवाना की सेठानी, सारी दुनिया में डंका भाजे तेरी जय हो माँ कल्याणी, भक्तो का कल्याण

दूसरो का दुखड़ा दूर करने वाले, तेरे दुःख दूर करेंगे राम । किये जा तू जग में भलाई का काम,

पल पल बीती जाए उमेरियां विरथा जन्म गवाया, ना राम नाम की धुनी रमाई कभी न हरी गुण गाया हे

नश्वर काया की सेवा में जन्म विरथा हो जावे तन का नित शिंगार करे पर मन में न रह जावे

ऐसी पिलाई साकी, कुर्बान हो चुके हम अब तक रहे जो बाकी, अरमान खो चुके हम करते हो दिल्लगी तुम,

जीते भी लकड़ी मरते भी लकड़ी, देख तमाशा लकड़ी का, क्या जीवन क्या मरण कबीरा, खेल रचाया लकड़ी का, जिसमे