ओम जय परशुधारी स्वामी जय परशुधारी
ओम जय परशुधारी स्वामी जय परशुधारी सुर नर मुनिजन सेवत श्रीपति अवतारी ओम जय परशुधारी स्वामी जय परशुधारी जमदग्नी सुत
ओम जय परशुधारी स्वामी जय परशुधारी सुर नर मुनिजन सेवत श्रीपति अवतारी ओम जय परशुधारी स्वामी जय परशुधारी जमदग्नी सुत
क्यों गरव करे इस काया का तेरी काया रहेगी ना अरे इंसान काया तेरी फुल समान क्यों गरवाया है नादान
हरि है कैसा मैं ना जानू मैं तो जानू प्रीतम मेरा मैं तो हारी कान्हा तू है मेरा कान्हा कान्हा,,,,,
हमारा प्रणाम है , हमारा प्रणाम है । राम जिनका नाम है अयोध्या जिनका धाम है । ऐसे धनुर्धारी को
भगवान तेरी दुनिया में इन्साफ ये कैसा होता है कोई धन से तोला जाता है कोई इक पैसे को रोता
मीरा जनमी मेड़ते, वा परणाई चित्तोड़, राम भजन प्रताप सूं सकल श्रृष्टि शिर मोड़, जगत में सारा जाणी आगे भई
सभा है भरी भगवन,भीर पड़ी, आवो तो आवो हरी, किसविध देर करी,सभा है भरी भगवन , भीर पड़ी आवो तो
एक बार चले आओ फिर आके चले जाना जाने नहीं दूंगा मैं जरा जाकर तो दिखलाना एक बार चले आओ…..
नारी अति महान जगत में नारी अति नहान, जिसका घर घर में समान, धर्म कर्म शृंगार है इसके सत्ये अहिंशा
यह ग़ज़ल है न गीत हैं कोई यह मेरे दर्द की कहानी हैं मेरे सीने में सिर्फ हो मेरे सीने