विविध भजन (Vividh Bhajan)

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मानव जनम गमायो रे

कदे ना हरि गुण गायो रे,ते मानव जनम गमियो रे लख चोरासी भटकत-भटकत, नर तन पायो रे रेकोल किया था

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अब तक तो निभाया

अब तक तो निभाया आगे भी निभा देना हे नाथ मोरी नैया उस पार लगा देना संभव है झंझटो में

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