सारो संसार दुःखी है सुखी कौन है सुनो
सारो संसार दुःखी है सुखी कौन है सुनो कोई तन दुखी कोई मन दुखी कोई धन बिना फायर उदास थोड़ा
सारो संसार दुःखी है सुखी कौन है सुनो कोई तन दुखी कोई मन दुखी कोई धन बिना फायर उदास थोड़ा
तर्ज – सुरमई अँखियों में तूही मेरी दुनिया , तेरा मेरा , एक अनुठा रिश्ता रे लाडले तूही मेरी जान
अभी तो जगाया था तू अभी सो गया, उठ परदेशी तेरा वक़्त हो गया, हम परदेशियो की यही है निशानी,
कर न फकीरी फिर क्या दिलगिरी सदा मगन में रहना जी, कोई दिन हाथी कोई दिन घोडा कोई दिन पैदल
यह मेरी अर्जी है,मैं वैसी बन जाऊं, जो तेरी मर्ज़ी है शब्दों का टोटा है ,गूंगापन प्यारे का,आसूओ से होता
अपनी नज़र में तुम क्या हो? ये मन की तराजू पर तोलो कभी कभी खुद से बात करो कभी कभी
प्रभु मुझ से पूछो मैं क्या चाहता हूँ, मैं तुझ से तुझे माँगना चाहता हूँ । मुझे खाना पीना पहनना
जुग तारण हरी आविया ओ, जुग तारण हरी आविया, लियो जम्भेश्वर अवतार धिन गुरु देव ने, माता हंसा ज्यारी केसरी,
बता मुझे ओ जहाँ के मालिक, ये क्या नजारे दिखा रहा है, तेरे समंदर में क्या कमी थी, की आदमी
गीता रामायण हम गायेगे, तभी हम श्रेष्ठ जीवन बनायेगे , आदर्श मर्यादित जीवन पायेगे, ओर संस्कारित जीवन अपनायेगे, गीता रामायण…….