भगवान राम अपनो को दंड नहीं
एक दिन संध्या के समय सरयू के तट पर तीनों भाइयों संग टहलते श्रीराम से महात्मा भरत ने कहा, “एक
एक दिन संध्या के समय सरयू के तट पर तीनों भाइयों संग टहलते श्रीराम से महात्मा भरत ने कहा, “एक
जब श्रीराम जी का राज्याभिषेक हुआ, तब एक दिन श्रीराम ने श्रीभरत जी को उलाहना दिया, “तुम इतने उदार और
द्रौपदी महाभारत के सबसे प्रसिद्ध पात्रों में से एक है। इस महाकाव्य के अनुसार द्रौपदी पांचाल देश के राजा द्रुपद
अयोध्या आगमन के बाद राम ने कई वर्षों तक अयोध्या का राजपाट संभाला और इसके बाद गुरु वशिष्ठ व ब्रह्मा
नमस्ते शरण्ये शिवे सानुकम्पेनमस्ते जगद्व्यापिके विश्वरूपे।नमस्ते जगद्वन्द्यपादारविन्देनमस्ते जगत्तारिणि त्राहि दुर्गे।। नमस्ते जगच्चिन्त्यमानस्वरूपेनमस्ते महायोगिनि ज्ञानरूपे।नमस्ते नमस्ते सदानन्दरूपेनमस्ते जगत्तारिणि त्राहि दुर्गे।। अनाथस्य
हे स्वामिनी राधे, कब ऐसी घड़ी आएगी,जब मैं आपके श्री चरणों की सेवा का सौभाग्य पाऊंगी , आप सिंघासन पर
।। नमो राघवाय ।। र’, ‘अ’ और ‘म’, इन तीनों अक्षरों के योग से ‘राम’ मंत्र बनता है। यही राम
‘‘अमन्त्रमक्षरं नास्ति नास्तिमूलमनौषधम्’’ अर्थात कोई ऐसा अक्षर नहीं, जो मंत्र न हो और कोई ऐसी वनस्पति नहीं, जो औषधि न
शास्त्रों में अनेकों बीज मन्त्र कहे हैं, आइये बीज मन्त्रों का रहस्य जाने १👉 “क्रीं” इसमें चार वर्ण हैं! [क,र,ई,अनुसार]
ॐ बं बुधाय नमः।ॐ अस्य श्रीबुधमन्त्रस्य ब्रह्मा ऋषिः, पङ्क्तिश्छन्दः, बुधो देवता, बुं बीजं, आपः शक्ति, बुधप्रीतये जपे विनियोगः। ॐ ब्रह्माऋषये