
दो महान संतों का मिलन भरत जी और हनुमानजी का मिलन
देखा भरत विसाल अति निसिचर मन अनुमानि।बिनु फर सायक मारेउ चाप श्रवन लगि तानि।। सामान्य जनों की तरह, हनुमानजी को

देखा भरत विसाल अति निसिचर मन अनुमानि।बिनु फर सायक मारेउ चाप श्रवन लगि तानि।। सामान्य जनों की तरह, हनुमानजी को

महाभारत काल अर्थात द्वापर युग में हनुमानजी की उपस्थित और उनके पराक्रम का वर्णन मिलता है।उन्हीं में से पांच प्रमुख

कपिश्रेष्ठाय शूराय सुग्रीवप्रियमन्त्रिणे।जानकीशोकनाशाय आञ्जनेयाय मङ्गलम्।।१।। मनोवेगाय उग्राय कालनेमिविदारिणे।लक्ष्मणप्राणदात्रे च आञ्जनेयाय मङ्गलम्।।२।। महाबलाय शान्ताय दुर्दण्डीबन्धमोचन।मैरावणविनाशाय आञ्जनेयाय मङ्गलम्।।३।। पर्वतायुधहस्ताय राक्षःकुलविनाशिने।श्रीरामपादभक्ताय आञ्जनेयाय मङ्गलम्।।४।।

एक असुर था – दम्बोद्भव । उसने सूर्यदेव की बड़ी तपस्या की । सूर्य देव जब प्रसन्न हो कर प्रकट

मंदिर के शिखर के ऊपर अष्टधातु में बना एक विशाल चक्र है जिसे नील चक्र अथवा श्री चक्र कहते हैं।

यही वह महाँन मंत्र है!जिसका जप करके बालक ध्रुव ने सच्चिदानन्द ब्रह्म को दर्शन देने पर विवश कर दिया! यह

वामन अवतार और राजाबलि के दान की कथा। कथा विस्तार से है मेरा निवेदन है कि कथा पूरी पढ़े। इस

, जय महाकाल, हर महादेव, ॐ नमः शिवाय , जय भोले नाथ , ॐ नमः शिवाय, रूप हूं,, विशाल हूं,,रुद्र

।। श्री रामाय नमः ।।एक दिन जब श्रीरघुनाथ जी एकांत में ध्यानमग्न थे, प्रियभाषिणी श्री कौसल्या जी ने उन्हें साक्षात्

यह महालक्ष्मी हृदय स्तोत्र का प्रभावशाली लघुरुप है। भगवती महालक्ष्मी के पूजन में लक्ष्मी का आवाहन करने हेतु इसे पढ़ें।