
श्रीमदभागवतमहापुराण में भगवन्नाम महिमा पोस्ट 9
श्री हरि: – गत पोस्ट से आगे……….. विष्णुदूतों द्वारा भागवतधर्म – निरूपण औरअजामिल का परमधामगमन श्रीशुकदेवजी कहते हैं – परीक्षित

श्री हरि: – गत पोस्ट से आगे……….. विष्णुदूतों द्वारा भागवतधर्म – निरूपण औरअजामिल का परमधामगमन श्रीशुकदेवजी कहते हैं – परीक्षित

मेरा परम पिता परमात्मा मेंरा जगत जगदीश प्रकाश का पूंज है।जिसमें सम्पूर्ण जगत समाया हुआ है।परम पिता परमात्मा कोई शरीर

वेद त्याग का उपदेश करते हैं . शास्त्र सब कुछ छोड़ने का कहते हैं।शास्त्र तो कहते हैं,”काम छोडो,क्रोध छोड़ो। परन्तु

ईश्वर जगत में किसी एक स्थान में है यह ज्ञान भी अपूर्ण है।ईश्वर सर्व व्यापक है, यह एक मूर्ति में

सत् नित्य हैं, चित् ज्ञान हैं, चित्-शक्ति अर्थात् ज्ञान-शक्ति ।मनुष्य अपने स्वरूप में (आत्मामें) स्थित नहीं है, अतः इसे आनंद

सच्चिदानंदरूपाय विश्वोत्पत्यादिहेतवे ।तापत्रयविनाशाय श्री कृष्णाय वयं नुमः ।। (माहात्म्य अ- 1 श्लोक -1) जो जगत् की उत्पत्ति, स्थिति और विनाश

श्री हरि: गत पोस्ट से आगे…निष्पाप पुरुषो ! शूद्र की भुजाओं में अंगरागादि कामोद्दीपक वस्तुएँ लगि हुई थीं और वह

चैतन्य महाप्रभु जगन्नाथपुरी से दक्षिण भारत की यात्रा पर निकले थे। उन्होंने एक स्थान पर देखा कि सरोवर के किनारे

श्री हरि: गत पोस्ट से आगे………..जो जीव अज्ञानवश काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर – इन छ: शत्रुओं पर विजय

श्री हरि: गत पोस्ट से आगे………..इस लोक में जो मनुष्य जिस प्रकार का और जितना अधर्म और धर्म करता है,