
अभिमानका पाप (ब्रह्माजीका दर्पभङ्ग )
ब्रह्माजी के मोह तथा गर्वभञ्जनकी भागवत, ब्रह्मवैवर्त शिव, स्कन्द आदि पुराणोंमें बहुत-सी कथाएँ आती हैं। अकेले ब्रह्मवैवर्तपुराणमें एकत्र कृष्णजन्मखण्ड के

ब्रह्माजी के मोह तथा गर्वभञ्जनकी भागवत, ब्रह्मवैवर्त शिव, स्कन्द आदि पुराणोंमें बहुत-सी कथाएँ आती हैं। अकेले ब्रह्मवैवर्तपुराणमें एकत्र कृष्णजन्मखण्ड के

कहा जाता है कि किसी नगरका एक नागरिक अतिथियों तथा अभ्यागतोंको अधिक परेशान करनेके लिये विख्यात हो गया था। कहते

राहकी बाधा बहुत पुरानी बात है। एक दिन राजा शौर्यने मुख्य मार्गके बीचोबीच एक बड़ा पत्थर रखवा दिया और स्वयं

श्री ईश्वरचन्द्र विद्यासागर अपने मित्र श्रीगिरीशचन्द्र विद्यारत्नके साथ बंगालके कालना नामक गाँव जा रहे थे। मार्गमें उनकी दृष्टि एक लेटे

एक नरेशने अपने दरबारमें सामन्तोंसे पूछा- ‘मांस सस्ता है या महँगा ?’ सामन्तोंने उत्तर दिया- सस्ता है।’ सामन्तोंकी बात सुनकर

हजरत इब्राहीम जब बलखके बादशाह थे, उन्होंने एक गुलाम खरीदा। अपनी स्वाभाविक उदारता के कारण उन्होंने उस गुलामसे पूछा—’तेरा नाम

सूर्याजी पंतका सुपुत्र नारायण बचपनसे ही विरक्त सा रहता, तप और ज्ञानार्जनमें ही उसका बचपन बीता। माँ पुत्रवधूका मुँह देखनेके

शारीरिक बलसे उपाय श्रेष्ठ है किसी वनमें बरगदका एक विशाल वृक्ष था। उसकी घनी शाखाओंपर अनेक पक्षी रहा करते थे।

कोसलमें गाधि नामके एक बुद्धिमान् श्रोत्रिय, धर्मात्मा ब्राह्मण रहते थे। शास्त्रज्ञान और धर्माचरणका फल विषयोंसे वैराग्य न हो तो शास्त्रज्ञान

विजयके लिये सेनापति आवश्यक एक समयकी बात है। हैहयवंशी क्षत्रियोंने अपने प्रचण्ड पराक्रमसे अलौकिक समृद्धि अर्जित की। उनकी इस विपुल