
कागज – पत्र देखना था, रमणी नहीं
प्रत्येक महान् पुरुषके यशका बीज उसके शुद्धाचरणमें ही समाया होता है। सन् 1896 सालकी घटना है, श्री ल0 रा0 पांगारकर

प्रत्येक महान् पुरुषके यशका बीज उसके शुद्धाचरणमें ही समाया होता है। सन् 1896 सालकी घटना है, श्री ल0 रा0 पांगारकर

पण्डित चन्द्रशेखरजी दीर्घ कालतक न्याय, व्याकरण, धर्मशास्त्र, वेदान्त आदिका अध्ययन करके काशीसे घर लौटे थे। सहसा उनसे किसीने पूछ दिया-

संतोंके संगसे क्या नहीं सुलभ हो सकता! हयग्रीव नामक दैत्यके एक पुत्र था, जो ‘उत्कल’ नामसे प्रसिद्ध हुआ। उसने समरांगणमें

दो सगे भाई थे, ब्राह्मण थे और दरिद्र थे। बहुत कम पढ़े-लिखे थे दोनों कंगालीसे ऊबकर दोनों साथ ही घरसे

देवता और दैत्योंने मिलकर अमृतके लिये समुद्र मन्थन किया और अमृत निकला भी; किंतु भगवान् नारायणके कृपापात्र होनेसे केवल देवता

मातु पिता गुर प्रभु कै बानी ” बहुत वर्ष हुए, प्रयागके माघ मेलेमें देवरहा बाबासे एक छोटी-सी कथा सुनी थी।

एक समय कुरुदेशमें ओलोंकी बड़ी भारी वर्षा हुईं। इससे सारे उगते हुए पौधे नष्ट हो गये और भयानक अकाल पड़

लगभग ढाई हजार वर्ष पहलेकी बात है। चीनके महान् तत्त्वविवेचक महात्मा कनफ्युसियसने घोड़ागाड़ीसे वी नगरमें प्रवेश ही किया था कि

एक संत थे। विचित्र जीवन था उनका। वे हरेकसे अपनेको अधम समझते और हरेकको अपनेसे उत्तम । घूमते-फिरते एक दिन

कलकत्तेके कुछ कॉलेजके विद्यार्थी वहाँका ‘फोर्ट विलियम’ किला देखने गये थे। सहसा उनके एक साथीके शरीरमें पीड़ा होने लगी। उसने