
भगवन्नामका जप करनेवाला सदा निर्भय है
दैत्यराज हिरण्यकशिपु हैरान था जिस विष्णुको मारनेके लिये उसने सहस्रों वर्षतक तपस्या करके वरदान प्राप्त किया, जिस विष्णुने उसके सगे

दैत्यराज हिरण्यकशिपु हैरान था जिस विष्णुको मारनेके लिये उसने सहस्रों वर्षतक तपस्या करके वरदान प्राप्त किया, जिस विष्णुने उसके सगे

उस समय मुगलसम्राट् अकबर राज्य कर रहा था। उसके बहुत-सी हिंदू बेगमें भी थीं। उनमेंसे एकका नाम था जोधाबाई ।

बाबा श्रीभास्करानन्दजी अपनी गङ्गातटकी कुटिया में बैठे भगवन्नामका जप कर रहे थे। सहसा आहट पाकर उनकी दृष्टि सामने की ओर

बुद्धिका चातुर्य एक वृद्ध महिलाकी आँखें बड़ी कमजोर हो गयी थीं, इस कारण वे कुछ देख नहीं पाती थीं। पासहीमें

श्रीजीव गोस्वामीजीके समयकी बात है। उनके प्रेमी एक महात्मा कदमखंडीमें बैठे श्रीराधा-माधवकी मधुर लीलाका ध्यान कर रहे थे। उनको दिखायी

मिश्र देशके प्रसिद्ध संत सेरापियोकी त्याग वृत्ति उच्च कोटिकी थी। चौथी शताब्दीके संत-साहित्यमें उनका नाम अमित प्रसिद्ध है। वे सदा

जूलियस सीज़रके विरुद्ध उसके शत्रु षड्यन्त्र करनेमें लगे थे। उसके शुभचिन्तकों तथा मित्रोंने सलाह दी – ‘आप अपने अङ्गरक्षक सिपाहियों

‘इस संसारके सब प्राणी अपने ही हैं, कोई भी पराया नहीं है। पापी घृणाका पात्र नहीं है, उससे निष्कपट प्रेम

श्री अश्विनीकुमार दत्त जब हाईस्कूलमें पढ़ते थे, तब कलकत्ता विश्वविद्यालयका नियम था कि सोलह वर्षसे कम अवस्थाके विद्यार्थी हाईस्कूलकी परीक्षामें

सन् 1865 ई0 की बात है। बंगालमें भीषण अकाल पड़ा था। सभी लोग क्षुधासे व्याकुल होकर इधर-उधर भाग रहे थे।