
समताका भाव
समताका भाव एकबार युद्ध से सम्बन्धित कोई विशेष समाचार लेकर एक सैनिक वायुवेगसे सम्राट् नेपोलियनके पास आया। उस सैनिकका घोड़ा

समताका भाव एकबार युद्ध से सम्बन्धित कोई विशेष समाचार लेकर एक सैनिक वायुवेगसे सम्राट् नेपोलियनके पास आया। उस सैनिकका घोड़ा

‘आपको अवश्य जाना चाहिये; सिकन्दर उदार है; अभी कल ही उसने पोरस (पुरु) महाराजके साथ राजाका-सा बर्तावकर जो उदारता दिखायी

सन् 1831 की बात है, एक 12 वर्षका हिंदू । बालक चित्तूरके जिला – जजके दरवाजेपर उपस्थित हुआ। वह एक

उससे वसन्त रूठ गया एक बगीचा शहरके बीचमें था। हरी घासका उसमें बहुत बड़ा लान था और चारों तरफ भाँति-भाँति

परिवर्तन एक मूर्तिकार था, उसने बेटेको भी मूर्तिकला ही सिखायी। दोनों हाटमें जाते और अपनी-अपनी मूर्तियाँ बेचकर आते। बापकी मूर्ति

लगभग ढाई सौ वर्ष पहलेकी बात है। बादशाह मुहम्मदशाहके खास-कलम – मीर – मुंशी थे कविवर घनानन्द। वे व्रजरसके महान्

विराट् विश्वको अभय, अद्वेष और अखेदका दिव्य संदेश देनेवाले भगवान् महावीरने साधना-पथपर चलनेवाले साधकोंको सम्बोधित करके कहा- ‘साधको! तुम स्वयं

मन्दिरके धनका दुरुपयोग करनेका दुष्परिणाम श्रीकुलदानन्द ब्रह्मचारीने श्रीसद्गुरुसंग नामक ग्रन्थमें महात्मा विजयकृष्ण गोस्वामीके निम्नलिखित वृत्तान्तको : उद्धृत किया है-‘एक दिन

संसारे सुखिनो जीवा भवन्ति गुणग्राहकाः उत्तमास्ते हि विज्ञेयाः कृष्णवद् दन्तपश्यकाः ॥ एक बार देवराज इन्द्रने अपनी देवसभामें कहा कि इस

अशोकवाटिकामें श्रीसीताजीको बहुत दुखी देखकर | महावीर हनुमानजीने पर्वताकार शरीर धारण करके उनसे कहा-‘ माताजी! आपकी कृपासे मैं पर्वत, वन,