
दर्पणकी सीख
दर्पणकी सीख पुराने जमाने की बात है। एक गुरुकुलके आचार्य अपने शिष्यकी सेवा-भावनासे बहुत प्रभावित हुए। विद्या पूरी होनेके बाद

दर्पणकी सीख पुराने जमाने की बात है। एक गुरुकुलके आचार्य अपने शिष्यकी सेवा-भावनासे बहुत प्रभावित हुए। विद्या पूरी होनेके बाद

कुछ समय पूर्व बलरामपुरमें झारखंडी नामक शिवमन्दिरके निकट बाबा जानकीदासजी रहते थे। वैराग्य एवं सदाचारमय जीवन ही उनका आदर्श था।

भलाईके लिये झूठ अच्छा एक बादशाहने एक कैदीको मौतकी सजा सुनायी। सजा सुनते ही कैदी बादशाहको गालियाँ देने लगा। चूँकि

भावनापूर्ण दान महाराज कुशलने जयतीर्थका पुनरुद्धार कार्य शुरू करवाया। नगरके धनिकोंने उसमें काफी दान देकर स्वेच्छासे सहयोग दिया। नगरकी एक

सन् 1916 की बात है। लखनऊ में कांग्रेसका महाधिवेशन था। गांधीजी उसमें सम्मिलित होने आये थे। वहाँ राजकुमार शुक्लद्वारा किसानोंकी

शास्त्रीजीकी नियमनिष्ठा यह घटना उन दिनोंकी है, जब लालबहादुर शास्त्री भारतके गृहमन्त्री थे। शास्त्रीजीकी सादगी सर्वविदित है। वे स्वयंपर अथवा

श्री ईश्वरचन्द्र विद्यासागरके यहाँ खुदीराम बोस नामके एक सज्जन पधारे। विद्यासागरने उन्हें नारंगियाँ दीं। खुदीरामजी नारंगियोंको छीलकर उसकी फाँकें चूस

पिताने अपने नन्हे से पुत्रको कुछ पैसे देकर बाजार भेजा फल लानेके लिये। बच्चेने रास्तेमें देखा, कुछ लोग, जिनके बदनपर

सौराष्ट्र में थानगढ़ नामक छोटेसे गाँवमें बेचर भक्त नामक एक सरल हृदय परम भक्त रहते थे। इनके घर एक बार

एथेनियन कवि एगोथनने अपने यहाँ एक बार एक विशाल भोजका आयोजन किया था। इस व्यक्तिको ग्रीक थियेटरमें प्रथम पुरस्कार प्राप्त