
श्रीरामका न्याय
श्रीरामका न्याय लंकाके निरंकुश शासक रावणको मारकर उसके धर्मनिष्ठ भाई विभीषणको राजपदपर अभिषिक्त करके महाराज श्रीराम अयोध्या लौट आये और

श्रीरामका न्याय लंकाके निरंकुश शासक रावणको मारकर उसके धर्मनिष्ठ भाई विभीषणको राजपदपर अभिषिक्त करके महाराज श्रीराम अयोध्या लौट आये और

बादशाहकी सवारी निकली थी। मार्गके समीप वृक्षके नीचे एक अलमस्त फकीर लेटे थे अपनी मस्तीमें। बादशाह धार्मिक थे, श्रद्धालु थे,

सवारने एँड़ लगायी और घोड़ा रुक गया भैंसावा ग्रामकी सीमापर। “समुझि लेओ रे मना भाई। अंत न होइ कोई आपना

ईश्वरका सच्चा भक्त एक महापुरुषने रातको स्वप्नमें एक देवदूतको कुछ लिखते देखा। उसने पूछा-‘देव! आप इस सुन्दर ग्रन्थमें क्या लिख

जब भगवान् विष्णुने वामनरूपसे वलिसे पृथ्वी तथा स्वर्गका राज्य छीनकर इन्द्रको दे दिया, तब कुछ ही दिनोंमें राज्यलक्ष्मीके स्वाभाविक दुर्गुण

संवत् 1700 के लगभग जैसलमेर राज्यान्तर्गत वारू ग्राममें चौहान क्षत्रिय माधवसिंहजी हुए थे स्वभावसे बहुत ही रजोगुणी थे। डाकुओंका संघटन

एक व्यक्ति शिकारके लिये जंगलमें गया। वहाँ उसने एक हरिनीको देखा। उसके साथ छोटा बच्चा था। शिकारी दौड़ा, हरिनी तो

एक सौदागर था नेशापुरमें। उसके यहाँ एक दासी थी अत्यन्त सुन्दरी । उसका एक ऋणी गाँव छोड़कर चला गया। सौदागरको

अच्छा पैसा ही अच्छे काममें लगता है अबुल अब्बास ईश्वर-विश्वासी त्यागी महात्मा थे; वे किसीसे भीख नहीं माँगते, टोपी सीकर

मारवाड़के ही नहीं, समग्र भारतीय इतिहासमें दुर्गादास राठौड़का नाम अमर है। जिस समय औरंगजेबकी सारी कुचेष्टाओंको विफलकर वे कुमार अजीतसिंहकी