
जासु सत्यता तें जड़ माया
जासु सत्यता तें जड़ माया (श्रीशरदचन्द्रजी पेंढारकर) समर्थ गुरु रामदासजीका प्रतिदिन संध्या समय शिष्योंके साथ अध्यात्म चर्चाका नियम था, जिसमें

जासु सत्यता तें जड़ माया (श्रीशरदचन्द्रजी पेंढारकर) समर्थ गुरु रामदासजीका प्रतिदिन संध्या समय शिष्योंके साथ अध्यात्म चर्चाका नियम था, जिसमें

हकीम लुकमान बचपनमें गुलाम थे। एक दिन उनके स्वामीने एक ककड़ी खानी चाही मुँहमें लगाते ही जान पड़ा कि ककड़ी

बूढ़ी धायका आशीर्वाद सन्त-महापुरुषका जीवन-चरित युवा वर्गके चरित्र निर्माणमें काफी हदतक सहायक सिद्ध हो सकता है। और उनके विकास-पथको आलोकित

सत्संगका प्रभाव प्राचीन कालमें कठिन नियमोंका पालन करनेवाले एक ब्राह्मण थे, जो ‘पृथु’ नामसे सर्वत्र विख्यात थे। वे सदा सन्तुष्ट

पदप्राप्तिसे हानि चीनी दार्शनिक चुआँग-जू नदीके किनारे बैठा मछलियाँ पकड़ रहा था, तभी एक राजदूतने आकर उससे कहा, ‘सम्राट्ने आपको

डॉ0 राधाकृष्णन् और स्टॉलिन डॉ0 राधाकृष्णन् प्रसिद्ध दार्शनिक और भारतके राष्ट्रपति थे। एक बार वे रूसके तानाशाह स्टालिनसे मिले। डॉ0

प्राचीन कालमें एक राजा थे, जिनका नाम था इन्द्रम्र से बड़े दानी, धर्मज्ञ और सामर्थ्यशाली थे। धनार्थियोंको वे सहस्र स्वर्णमुद्राओंसे

किसी नरेशको पक्षी पालनेका शौक था। अपने पाले पक्षियोंमें एक चकोर उन्हें इतना प्रिय था कि उसे वे अपने हाथपर

महात्मा गांधीजीने कहा है- ‘मैंने गुरु नहीं बनाया; किंतु मुझे कोई गुरु मिले हैं तो वे हैं- रायचंद भाई।’ ये

सर्वत्र इंटका जवाब पत्थर ही नहीं होता आचार्य कृपाशंकरजी के श्रीमुख सुनी गयी एक भावपूर्ण कथाका उल्लेख किया जा रहा