
सत्यनिष्ठा (गुरु रामसिंह )
‘सत्य ही एकमात्र धर्म है। सत्यको पकड़े रहनेसे सभी धर्मके अङ्ग स्वतः सिद्ध हो जाते हैं। सत्य ही मुक्तिका साधन

‘सत्य ही एकमात्र धर्म है। सत्यको पकड़े रहनेसे सभी धर्मके अङ्ग स्वतः सिद्ध हो जाते हैं। सत्य ही मुक्तिका साधन

चरैवेतिके उपदेशक (म0म0 देवर्षि श्रीकलानाथजी शास्त्री) वेदके व्याख्याकार और ऐतरेय ब्राह्मणके प्रणेता महीदास ऐतरेय वेदकालीन भारतके ऐसे तपस्वी ऋषि हुए

जीवन मिश्र नामके एक पण्डित थे। वे देवीके भक्त थे। एक दिन वे कहींसे देवीको पूजा करवाके आ रहे थे।

सत्याचरणका प्रभाव दिव्यक नामक एक व्यक्ति भगवान् बुद्धकी ख्याति सुनकर उनके पास पहुँचा। उनके दर्शनसे उसे अपार शान्ति मिली। उसने

बात उस समयकी है जब श्रीरामानुजाचार्य अपने प्रथम विद्यागुरु श्रीयादवप्रकाशजीसे अध्ययन करते थे। यादवप्रकाशजी अपने इस अद्भुत प्रतिभाशाली शिष्यसे डाह

प्राचीन कालमें एक परम शिवभक्त राजा था। एक दिन उसे कल्पना सूझी कि आगामी सोमवारको अपने इष्टदेव शंकरका हौद दूधसे

एक दिनकी बात है। योगिराज गम्भीरनाथ अपने कपिलधारा पहाड़ीवाले आश्रममें अत्यन्त शान्त और परम गम्भीर मुद्रामें बैठे हुए थे। वे

भावनगर राज्यके खेडियार माताके मन्दिरमें चण्डी पाठका अनुष्ठान चल रहा था। इसी बीचमें एक दिन चैत्र कृष्ण पञ्चमीको महाराज श्रीभावसिंहजी

सतीशिरोमणि राजमती – जिसका घरेलू प्यारका नाम राजुल था, यादववंशकी एक उज्ज्वल कन्या – रत्न थी । यदुकुलभूषण समुद्रविजयके तेजस्वी

शेषावतार श्रीरामानुज महामुनीन्द्रके पवित्र सम्प्रदायमें श्रीवैष्णव-जगत्के महान् आचार्य श्रीवेङ्कटनाथका प्राकट्य विक्रम संवत् 1325 में विजयादशमीके दिन हुआ था। ये बहुत