
दुर्जन-सङ्गका फल
कोई राजा वनमें आखेटके लिये गया था। थककर वह एक वृक्षके नीचे रुक गया। वृक्षकी डालपर एक कौआ बैठा था।

कोई राजा वनमें आखेटके लिये गया था। थककर वह एक वृक्षके नीचे रुक गया। वृक्षकी डालपर एक कौआ बैठा था।

एक नैष्ठिक भक्त पण्डित थे। भक्त विमलतीर्थ उनके ही पुत्र थे। पिताने बाल्यकालमें इन्हें यथाविधि यज्ञोपवीतादि संस्कारोंसे संस्कृत कर दिया।

एक बार एक दरिद्र ब्राह्मणके मनमें धन पानेकी तीव्र कामना हुई। वह सकाम यज्ञोंकी विधि जानता था; किंतु धन ही

माताके सत्संगका गर्भस्थ शिशुके जीवनपर प्रभाव भक्तश्रेष्ठ प्रह्लादजीको दैत्यराज हिरण्यकशिपु भगवान्के स्मरण-भजनसे विरत करना चाहता था। उसकी धारणा थी कि

चीनके एक बादशाहके शासन कालमें प्रजाको अनेक प्रकारके कर देने पड़ते थे। बाहरसे आनेवाली वस्तुओंपर बड़ा शुल्क देना पड़ता था।

कांग्रेसका 26 वाँ अधिवेशन मद्रासमें हो रहा था। गांधीजी श्रीनिवास आयंगरके मकानपर ठहरे थे। वे उन दिनों प्रायः राजनीतिसे अलग

एक समयकी घटना है। महात्मा विजयकृष्ण गोस्वामी अध्यात्मका प्रचार कर रहे थे; दैवयोगसे वे लाहौर जा पहुँचे। एक धर्मशालामें ठहरे

गोदावरीके समीप ब्रह्मगिरिपर एक बड़ा भयंकर व्याध रहता था। वह नित्य ही ब्राह्मणों, साधुओं, यतियों, गौओं और मृग-पक्षियोंका दारुण संहार

एक वीतराग संतका दर्शन करने वहाँके नरेश पधारे। साधु कौपीन लगाये भूमिमें ही अलमस्त पड़े थे। नरेशने पृथ्वीपर मस्तक रखकर

पूर्वानुमानका महत्त्व एक राजाको बन्दर पालनेका शौक था। उसका वह शौक ही उसका मनोरंजन था। वह समस्त प्रकारके बन्दरोंको एकत्रित